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काम और आराम
पं. विष्णु शर्मा संस्कृत के प्रकांड विद्वान् थे । एक दिन वे बच्चों के संग खेल रहे थे। इसी बीच उनके कुछ मित्र वहाँ आ पहुँचे। एक मित्र ने पूछा, “पंडित जी, आप इतने बड़े विद्वान् होकर बच्चों के साथ खेल रहे हैं ! इससे आपका मूल्यवान् समय नष्ट नहीं होता ?" पंडितजी ने मित्र की बात का कोई उत्तर न देकर एक बच्चे को संकेत किया कि वह धनुष ले आए। जब धनुष आ गया तो उन्होंने उस धनुष की डोरी ढीली करके रख दी। सभी मित्र असमंजस में पड़ गए कि आखिर पंडित जी कहना क्या चाहते हैं । तब उन्होंने अपनी बात स्पष्ट की, "भाई, हमारा मन धनुष की तरह है। अगर धनुष पर डोरी हमेशा चढ़ी रहे तो उसकी मजबूती कुछ समय में ही जाती रहेगी और यह जल्दी टूट जाएगा; किंतु अगर काम पड़ने पर ही इस पर डोरी चढ़ाई जाए तो वह अधिक समय तक टिकेगा और काम भी अच्छा होगा। इसी प्रकार हमारा मन है। काम के बाद यदि उसे आराम मिलता रहे तो वह स्वस्थ रहेगा और अच्छा काम करेगा।"
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