Book Title: Story Story
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group
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16
पांडवों की माता कुन्ती ने एक दिन श्री कृष्ण से प्रार्थना की।
विपदः सन्तु नः शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो ! भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भव-दर्शनम् ।।
हे जगद्गुरु ! सारे संसार का ज्ञान देने वाले शिक्षक प्रवर ! स्थान-स्थान पर हमें निरन्तर विपत्तियाँ प्राप्त हों, जिससे अपुनर्भव का दर्शन कराने वाला आपका दर्शन होता रहे। अपुनर्भव याने जहाँ जाने के बाद वापस संसार में लौटना नहीं होता, ऐसा परमधाम ।
विपत्तियों की माँग का श्लोक में जो कारण बताया है, उसके अतिरिक्त और भी कुछ कारण विपत्तियों की माँग के पीछे, हैं जैसे
सुख में दूसरों के दुःख का अनुभव नहीं हो पाता । दुःखी व्यक्ति ही दूसरों के दुःख को गहराई से समझ कर उसे दूर करने का उपाय कर सकता है।
दूसरी बात यह है कि जिस प्रकार हरड़े खाने के बाद साधारण जल भी मधुर लगता है, उसी प्रकार दुःखी व्यक्ति को साधारण-सा सुख भी अधिक मधुर लगता है।
तीसरी बात यह है कि दुःख में ही प्रभु का स्मरण बना रहता है।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय ||
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दुःख की याचना
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