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सन् १८५७ के विद्रोह के अग्रणियों में बिहार के महाराजा कुँवर सिंह का नाम सदा बड़े सम्मान के साथ लिया जाएगा। वे जब तक जीवित रहे, अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का झंडा ऊँचा किए रहे।
एक दिन शाहाबाद जाने के लिए कुँवर साहब नाव द्वारा गंगा
पार कर रहे थे कि अंग्रेज सेना को इसका पता चल गया। सेनापति लुंगर्ड ने किनारे गोली चलाई। गोली कुँवर सिंह के दाहिने हाथ की कलाई में लगी। उन्होंने चट दाहिने हाथ
को तलवार से काटकर गंगा 'माता को समर्पित करते हुए कहा, "जो हाथ फिरंगी की गोली से अपवित्र हो गया हो वह अब किस काम का ! अतः मैं यह तुम्हें भेंट करता हूँ।"
गौरव और गरिमा से जीना ही जीवन है।
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