Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ॐ णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स
श्री स्थानाङ्ग सूत्रम्
(शुद्ध मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ एवं विवेचन सहित)
भाग-२
पांचवाँ स्थान
प्रथम उद्देशक चौथे अध्ययन के वर्णन के पश्चात् अब संख्या क्रम से पांचवें अध्ययन का वर्णन किया आता है। पांचवें अध्ययन (पांचवें स्थान) के तीन उद्देशक हैं। उसमें से प्रथम उद्देशक इस प्रकार है -
. महाव्रत, अणुव्रत पंच महव्वया पण्णत्ता तंजहा - सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं । पंचाणुव्वया पण्णत्ता तंजहा - थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छापरिमाणे॥१॥
कठिन शब्दार्थ - पंच - पाँच, महव्वया - महाव्रत, वेरमणं - विरमण-निवृत्त होना, अणुव्वयाअणुव्रत, थूलाओ - स्थूल, सदारसंतोसे - स्वदार संतोषं, इच्छा परिमाणे - इच्छा परिमाण।
भावार्थ - श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पांच महाव्रत फरमाये हैं यथा - सर्व प्रकार के प्राणातिषात से निवृत्त होना, सब प्रकार के मृषावाद से निवृत्त होना, सब प्रकार के अदत्तादान यानी चोरी से निवृत्त होना, सब प्रकार के मैथुन से निवृत्त होना, सब प्रकार के परिग्रह से निवृत्त होना। पांच अणुव्रत कहे गये हैं यथा - स्थूल यानी मोटे प्राणातिपात से निवृत्त होना, स्थूल मृषावाद से निवृत्त होना,
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