Book Title: Sthanang Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 741
________________ स्थानासो ७२० ___“सो संकमोत्ति भन्नइ, जं बंधणपरिणओ पओगेणं ।। पययंतरत्थदलियं परिणामइ नदणुभावे ज ॥ १॥" छाया-" स संक्रम इति भण्यते यद् बन्धनपरिणतः प्रयोगेण । प्रकृत्यन्तरस्थदलिकं परिणमयति तदनुभावे (तदाकारे) यत् ।।" इति स चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-प्रकृतिसंक्रमः-संक्रमस्य सामान्यलक्षणमनुसृत्य बोध्यः १, स्थितिसंक्रमः-मूलप्रकृतीनामुत्तरप्रकृतीनां वा स्थितेरुत्कर्षण मपकर्पणं वा, यद्वा-मूलप्रकृतीनामुत्तरप्रकृतीनां वा प्रकृत्यन्तरस्थितौ प्रापणम् , उक्तं च____ " ठिइ संकमोत्ति वुच्चइ, मूलुत्तरपगईण उ जा हि ठिई। उव्यहिया व ओवटिया व पगइंणियावऽन्नं ।१। छाया-स्थितिसंक्रम इत्युच्यते मूलोत्तरप्रकृतीनां तु या हि स्थितिः । उद्धर्तिता वा अपवर्तिता वा प्रकृति नीता वाऽन्याम् ।१। इति करता है उस प्रकृतिके आकार में प्रकृत्यन्तरके दलिकको परिणमा देना यह संक्रम है कहा भी है "सो संकमोत्ति भणिजो" इत्यादि यह संक्रम चार प्रकारका कहा गया है, जैसे-प्रकृति संक्रम आदि. प्रकृति संक्रमका स्वरूप-" सो संकभोत्ति” इत्यादि-इत्यादि गाथा द्वारा जैसा कहा गया है वैताही है । मूल प्रकृतियों की या उत्तर प्रकृ. तियोंकी स्थितिको उत्कण रूपमें करना या अपकण रूपमें करना, अथवा मूलप्रकृतियोंको या उत्तर प्रकृतियों को प्रकृत्यन्तर की स्थिति में लाकर प्राप्त करा देना यह स्थिति संक्रमहै । कहाभी है-"ठिइ संक्रमोत्ति बुच्चा" इत्यादि. इसी प्रकारका कथन अनुभाव संक्रमके सम्बन्धमें જીવ જે કર્મ પ્રકૃતિને અન્ય કરે છે, તે કર્મપ્રકૃતિના આકારમાં પ્રકત્યન્તર (અન્ય પ્રકૃતિના) દલિકાને પરિમિત કરી નાખવા તેનું નામ સંકમ छ. इधु ५५ छे -" सो संकमोत्ति भणिओ" त्याहि___मा सभ. या२ ५४२ने। छ-(१) प्रकृति सभ, (२) स्थिति संभ, (3) अनुमान सभ. मन (४) प्रदेश सभ. प्रति समर्नु २१३५ " स्रो संकमोत्ति" त्यादि आयामi प्रमाणे सभा भू प्रकृतिमानी અથવા ઉત્તર પ્રકૃતિઓની સ્થિતિનું ઉત્કર્ષણ અપકર્ષણ કરવું અથવા મૂળ પ્રકૃતિઓને અથવા ઉત્તર પ્રવૃતિઓને પ્રત્યુત્તરની (અન્ય કઈ પ્રકૃતિની) સ્થિતિ પ્રાપ્ત કરાવી દેવી તેનું નામ સ્થિતિસક્રમ છે કહ્યું પણ છે કે– "ठिइ संकमो त्ति वुच्चद" त्याहि. मे २j ४थन अनुमा सम

Loading...

Page Navigation
1 ... 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822