Book Title: Sthanang Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 748
________________ ૭૨૭ सुघाटीका स्था० ४ उ०२ सू० ५९ एक-कति सर्वशब्दानां प्ररूपणम् " चत्तारि कइ " इत्यादि - कतिशब्दः संख्यापरिमाण विशेषविषयप्रश्नविषपदार्थवाचको बहुवचनान्तः, स च सामान्यतया नपुंसके प्रयुक्त, तानि कति चत्वारि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - द्रव्यकति- द्रव्याण्येव द्रव्यकति-कति द्रव्याणीत्यर्थः, यद्वा-द्रव्यविषयः कतिशब्दो द्रव्यकतिः, एवं मातृकादिष्वपि वोध्यम् । नवरंसग्रहाः- शालियवगोधूमाः, त एव कति सङ्ग्रहकति | ४ | , पर्यायी अपेक्षा से होता है, क्योंकि पर्याय सामान्य की अपेक्षा समस्त पर्याय एक है, अतः वह पर्यायैरुक है । तथा चतुर्थ एक संग्रहकी अपे. क्षासे होता है अतः वह संग्रहैकक है, यद्यपि सत् की अपेक्षा 'सदैक इस रूपसे एकही एक हो सकता है परन्तु यहां चतुःस्थान के अनुरोध से इसका ग्रहण नहीं हुवा है । " चत्तारि कह " इत्यादि -- कति शब्द सदा बहुवचनान्त है और यह संख्या एवं परिमाणविशेष विषयक प्रश्न सम्बन्धी पदार्थका वाचक होता है, यहां यह सामान्यरूप होनेसे नपुंसकलिङ्गमें प्रयुक्त हुवा है । वैसे तो कति शब्द व्याकरणमें पुंलिङ्गमें निर्दिष्ट हुवा है, ये कति चार कहे गये हैं । जैसे- द्रव्य कति आदि, द्रव्यरूप जो कनि शब्द है वह द्रव्यकति है । जैसे-कति द्रव्याणि, यहां द्रव्योंकोही कतिरूप मान लिया गया है, अथवा द्रव्यको विषय करनेवाला जो कति शब्द है वह द्रव्यकति है । इसी तरह से मातृका आदि पदोमें समझ लेना चाहिये, 1 કહે છે. ત્રીજુ એકક પર્યાયની અપેક્ષાએ થાય છે, કારણ કે પર્યાય સામાન્યની અપેક્ષાએ સમસ્ત પર્યાય એક છે, તેથી તે એકકને પપૈકક કહે છે. તથા थोथु थोउड संग्रह ( सभूड ) नी अपेक्षाओ थाय छे, तेथी तेने स है !! કહે છે જો કે સત્ની અપેક્ષાએ ‘· સૌક' આ રૂપે એક જ હાઇ શકે છે, પરન્તુ અહીં ચાર સ્થાનનું પ્રકરણ ચાલતુ હાવાથી તેને ગ્રહણ કરેલ નથી " चचारि कइ " त्याहि--' उति' शब्द डुभेशा मडुवयनमां वपराय છે. તે સખ્યા અને પરિણામ વિષયક પ્રશ્ન સબંધી પદાર્થને વાચક હોય છે. અહીં સામાન્ય રૂપે તેના પ્રયોગ થયેલા હાવાથી તેને નપુસકલિંગ ( નાન્યતર જાતિ ) માં વાપરવામાં આવેલ છે—આમ તે કતિ પદ વ્યાકરણમાં પુલૈિંગ (नर जति) नुं अधु छे ते उति ( हु ) २ अारना ह्या छे - (१) द्रव्य श्रुति, (२) भातृ श्रुति, (3) पर्याय उति, (४) संग्रह उति द्रव्य३५ ने अति छेतेने द्रव्यति से छे. नेम" कति द्रव्याणि " महीं द्रव्याने કતિરૂપ માની લેવામાં આવેલ છે અથવા દ્રબ્યાનું પ્રતિપાદન કરનારા જે કતિ શબ્દ છે તેનું નામ દ્રવ્યકતિ છે એ જ પ્રમાણે માતૃકા આદિ પદોમાં પશુ સમજી લેવું.

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