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स्थानाइसूत्रे गाथापञ्चकमाह-'गंता' इत्यादि, 'गंता ३, अगंता ३, आगंता ३' इति नत्र सूत्राणि पूर्वमुक्तानि, अनुक्तानि-सूत्राण्याह-' अगागंता' इत्यादि, आलापकइन्हीं उक्त अनुक्त सूत्रों को संग्रह करने के लिये सूत्रकारने इस गाथा पंचक को कहा है -'गंता य आगंता य' इत्यादि । इस प्रकार से गत्वा के ३, अगत्वा के ३, और आगम्य के ३ ये यहाँ ९ सत्र तो कहे गये हैं । जो " गंता य अगंता य आगंता" इन गाथास्थ तीन पदों द्वारा प्रकट किये गये हैं। तथा जो यहां पर नहीं किये गये हैं वे पद इन गाथाओं द्वारा सूचित किये गये हैं " जैसे “अणागंता-अनागत्य, चिद्वित्ता-स्थित्वा, अचिट्टित्ता-अस्थित्वा, णिसिहत्ता-निषद्य, अणिसिइत्ता-अनिषिद्य, हंता-हत्या, अहंता-अहत्वा, छिदिता-छित्त्वा, अछिदित्ता-अच्छित्वा, बूइत्ता-उक्त्वा, अबूहत्ता-अनुक्त्वा, भासित्ता -आषित्वा, अभासित्ता-अभाषित्वा, दत्ता-दत्वा, अदत्ता-अदत्त्वा, भुंजित्ता-भुक्त्वा, अभंजित्ता-अभुक्त्वा, लंभित्ता-लब्ध्वा, अलंभित्ताअलब्ध्वा, पिइत्ता-पीत्वा, अपिइत्ता-अपीत्वा, सुइत्ता-लुप्त्वा, असु. इत्ता-असुप्त्वा, जुज्झित्ता-युद्ध्वा, अजुज्झित्ता-अयुद्ध्वा, जहत्ताजित्वा, अजइत्ता-अजित्वा, पराजिणित्ता-पराजित्य, अपराजित्य, शब्द જ રહેશે, આ ઉક્ત અનુક્ત સૂત્રને સંગ્રહ કરવાને માટે સૂત્રકારે આ ગાથાપંચકનું કથન કર્યું છે.
"गंताय, आगंताय" त्याह
मा प्रारे, गत्वा (धन) । , अगत्वा (गया विना) ॥ 3, भने आगम्य ( मावान ) न 3 भजीत दस नव सूत्रानुं तो सूत्रमारे मडी ४थन ४२॥ सीधु छ, रे " गंता य अगंता य आगता" मा थाना न पह! દ્વારા પ્રકટ કરવામાં આવેલ છે. તથા જેમનું અહીં કથન કરવામાં આવ્યું નથી, તે પદનું ગાથા દ્વારા સૂચન કરવામાં આવ્યું છે – ___“ अणागता-अनागत्य, चिद्वित्ता-स्थित्वा, अचिद्वित्ता-अस्थित्वा, णिसिइत्ता निषद्य, अणिसिइता-अनिषिध, ह ता-हत्वा, अहंता-अहत्वा, छिदित्ता-छिया, अछिंदित्ता-अच्छित्वा, बूइत्ता-उक्त्वा, अवूइत्ता-अनुक्त्वा, भासित्ता-भाषित्वा, अभासित्ता-अभाषित्वा, दत्ता-दत्वा, अदत्ता-अदत्वा, भुंजित्ता-भुक्त्वा, अभुजित्ता अभुक्त्वा, लंभित्ता-लब्ध्वा, अलभित्ता-अलव्ध्वा, पिइत्ता-पीत्वा, अपिइत्ता-अपीत्वा, -सुरत्ता-सुप्त्वा असुइत्ता-असुवा, जुज्झिचा-युद्ध्वाा , अजुज्झित्ता-अयुवा, जइत्ताजित्वा अजइत्ता-अजित्वा, पराजिणित्ता-पराजित्य, अपराजित्य, शब्द, रूप, गंध, रस,