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स्थानाङ्ग
सम्यग्मिथ्यादृष्टश्च । अथवा त्रिविधाः सर्वजीवाः - प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाः अपर्याप्तकाः, नोपर्याप्तका नोअपर्याप्तकाः ३ । एवम् - " सम्यग्दृष्टिपरित्ताः, पर्याप्तक - सूक्ष्म - सञ्ज्ञि - भाविकाश्च " ॥ सू० ३८ ॥
टीका - ' तिविहा ' इत्यादि -- संसारसमापन्नकाः - संसरणं - संसारः - नारकतिर्यङ्नरामरभवानुभवलक्षणः, तं सम्यग् - एकीभावेन आपन्नाः - प्राप्ता आश्रिता इति ते तथा संसारिण इत्यर्थः ते स्त्रीपुरुषनपुसकभेदेन त्रिविधा भवन्ति १ | जीवाधिकारात् पुनः सर्वजीवां तीन प्रकार से इस तरह से भी कहे गये हैं जैसे-पर्यातक, अपर्याप्तक और नो पर्याप्त नो अपर्याप्तक तथा समस्त जीव परित्त, अपरित्त और नो परिन्त नो अपरित इस तरह से भी तीन प्रकार के कहे गये हैं तथा सुक्ष्म, बादर, नो सूक्ष्म नो बादर इस तरह से भी तीन प्रकार के समस्त जीव कहे गये हैं तथा संज्ञी, असंज्ञी, नोसंज्ञी नोअसंज्ञी, इस प्रकार से भी सब जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं तथा भव्य, अभव्य और नोभव्य नोअभव्य के भेद से भी समस्त जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं ।
टीकार्थ - परिभ्रमण करनेका नाम संसार है, जीवका परिभ्रमण नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव इन गतियों में होता है - अतः इन चार गति रूप ही संसार है, इस संसार को जो अच्छी तरह से एकी भावरूप से प्राप्त करते हैं वे संसारी समापन्नक-संसार जीव हैं । ये संसारी जीव स्त्री, पुरुष और नपुंसक के भेद से तीन प्रकारके कहे गये हैं ।
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ह्या छे- (१) सभ्यग्दृष्टि, (२) मिथ्यादृष्टि, भने ( 3 ) सभ्यभूमिथ्यादृष्टि अथवा समस्त लवाना या प्रभा पत्र प्रार पडे छे- १) पर्यास, (२) अय. यति भने ( 3 ) नापर्यासनापर्यास समस्त संसारी भवना (१) परित्त, (२) अपरित भने ( 3 ) नोपरित नामपरित, सेवा प्रभु प्रार पडे छे. तथा (१) सूक्ष्म, (२) माहर भने (3) नासूक्ष्म नोणाहर, मेवा ત્રણ પ્રકાર પડે છે अथवा (१) सज्ञी, (२) असज्ञी मने (3) नास ज्ञी નાઅસ ફ્રી, એવા ત્રણ પ્રકાર પણ પડે છે અથવા (૧) ભવ્ય, (૨) અભવ્ય अने (3) नालव्य नाखभव्य सेवा त्रयु प्रहार पशुपडे छे.
ટીકા –પરિભ્રમણ કર્યા કરવુ તેનું નામ જ સ`સાર છે. જીવ નારક, તિર્યંચ, મનુષ્ય અને દેવગતિમા પરિભ્રમણ કર્યાં કરે છે. તેથી આ ચાર ગતિએ રૂપ જ સસાર છે. જે જીવેાએ એકીભાવ રૂપે આ સ’સારને પ્રાપ્ત કરલે છે તે જીવાને સ’સારસમાપન્નક જીવેા છે. તે સ'સારી જીવાના સ્ત્રી, પુરુષ અને નપુંસક, આ ત્રણુ સ'સારી જીવા કહે પ્રકાર
અથવા
પડે