Book Title: Sramana 2002 07 Author(s): Shivprasad Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 8
________________ तीर्थङ्कर अरिष्टनेमि : ३ के लिए प्रयुक्त हुआ है। ध्यान देने योग्य है कि 'शौरि' शब्द का प्रयोग पुराणों में वासुदेव एवं श्रीकृष्ण के लिए भी हुआ है। वर्तमान में आगरा जिले में बटेश्वर के निकट शौरिपुर नामक एक स्थान है जो प्राचीन युग में यादवों की राजधानी थी। जरासन्ध के भय से यादव लोग यहीं से भागकर द्वारिकापुरी में जा बसे थे। शौरिपुर में ही अरिष्टनेमि का जन्म हुआ था। अत: उन्हें शौरि भी कहा गया है। वे जिनेश्वर तो थे ही. अत: अधिक सम्भावना है कि 'शूरः शौरिर्जनेश्वर' शब्द भगवान् अरिष्टनेमि के लिए प्रयुक्त हुआ है। प्रसिद्ध दार्शनिक डॉ० एस० राधाकृष्णन् ने भी यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थङ्करों का उल्लेख माना है।६ प्रभासपुराण में भी रेवताद्रौ जिनोनेमियुगादि विमलाचले' कहकर अरिष्टनेमि की स्तुति की गयी है। स्कन्दपुराण के प्रभास खण्ड में कुछ श्लोक इस प्रकार हैं भवस्य पश्चिमे भागे वामनेन तपः कृतम्। तेनैव तपसाकृष्टः शिवः प्रत्यक्षतांगतः।। पद्मासनः समासीनः श्याममूर्ति दिगम्बरः। नेमिनाथ शिवोऽथैवं नामचक्रेऽस्य वामनः।। इन श्लोकों के आधार पर पं० कैलाशचन्द शास्त्री लिखते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि नेमिनाथ की श्यामवर्ण पद्मासन रूप जैन मूर्ति को शिव की संज्ञा दे दी गयी है। कैलाशचन्द्र शास्त्री- जैन साहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका, पृ० १४३. नन्दीसूत्र में ऋषिभाषित का उल्लेख मिलता है। ऋषिभाषित जैन-परम्परा के आगम-ग्रन्थों में आचाराङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के पश्चात् का सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ है, इसका सम्भावित रचनाकाल ई०पू० चौथी शताब्दी है। उसमें ४५ प्रत्येक बुद्धों द्वारा निरूपित ४५ अध्ययन हैं उसमें नारद, वज्जियपुत्र, असित देवल, भारद्वाज अङ्गिरस, पुष्पसालपुत्र, वल्कलचीरि आदि बीस प्रत्येकबुद्ध भगवान् अरिष्टनेमि के समय हुए।८ उक्त अध्ययन अरिष्टनेमि के अस्तित्व के स्वयंभूत प्रमाण हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० पी०सी० दीवान के अनुसार नेमिनाथ और पार्श्वनाथ के बीच में ८४००० वर्ष का अन्तर है। हिन्द पुराणों में इस बात कोई निर्देश नहीं है कि वसुदेव के समुद्रविजय बड़े भाई थे और उनके अरिष्टनेमि नामक कोई पुत्र था।९ कर्नल टॉड ने अरिष्टनेमि के सम्बन्ध में लिखा है 'मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में चार बुद्ध या मेधावी महापुरुष हुए हैं। उनमें पहले आदिनाथ और दूसरे नेमिनाथ थे। नेमिनाथ ही स्केण्डीनेविया निवासियों के प्रथम ओडिन तथा चीनियों के प्रथम देवता थे।२० इन विद्वानों के अतिरिक्त डॉ० नगेन्द्रनाथ बसु, डॉ० फ्यूरर, प्रोफेसर बारनेट, मिस्टर करवा, डॉ० हरिदत्त, डॉ० प्राणनाथ विद्यालङ्कार प्रभृति अन्य अनेक विद्वानों ने अरिष्टनेमि को ऐतिहासिक पुरुष माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 182