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अनेकान्तवाद और उसकी व्यावहारिकता : २५
नहीं होगी। वे अपने को तथा अन्य लोगों को अधार्मिक कार्यों में रत नहीं रख पायेंगे। अत: उनके लिए सोना अच्छा है। परन्तु जो जीव धार्मिक हैं, रागी हैं, धार्मिक वृत्ति रखने वाले हैं, उनके लिए जागना अच्छा है क्योंकि वे अनेक जीवों को सुख देते हैं। जब तक वे जागते रहेंगे तब तक अपने को तथा अन्य व्यक्तियों को धार्मिक कार्यों में रत रखेंगे।
अत: उनका जागना अच्छा है। २८ ।। जयन्ती - भगवन्! बलवान् होना अच्छा है या निर्बल होना? महावीर - जो जीव धार्मिक हैं अर्थात् धार्मिक वृत्ति वाले हैं, उनका बलवान् होना
अच्छा है, क्योंकि वे अपने बल का प्रयोग धार्मिक कार्यों में करेंगे जिससे दूसरे जीवों को सुख की प्राप्ति होगी और, जो जीव अधार्मिक हैं अर्थात् अधार्मिक वृत्ति वाले हैं, उनका निर्बल होना अच्छा है, क्योंकि वे अपने बल का प्रयोग अधार्मिक कार्यों में करेंगे, जिससे अन्य जीवों को कष्ट
पहुँचेगा। अनेकान्तवाद की उपयोगिता
अनेकान्तवाद कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि एक व्यावहारिक सिद्धान्त है जिसका सम्बन्ध धार्मिक, सामाजिक राजनीतिक, सांस्कृतिक, वैचारिक आदि सभी क्षेत्रों से है। व्यावहारिकता के परिवेश में अनेकान्त का अभिप्राय है- “व्यक्ति को एक ही अनुभव या एक ही ज्ञान पर आग्रहवान् न बनाकर अपने मस्तिष्क को ज्ञान के लिए उन्मुक्त रखना। तात्पर्य है कि हमको एक ज्ञान हुआ या एक अनुभव हुआ, उसी में अपने आपको न समेटकर, अपने मस्तिष्क को हर ज्ञान के लिए खुला रखना चाहिए जिससे कि हम एक दूसरे के विचारों का लेन-देन भली-भाँति कर सकें। दूसरे की बातों को भी हम अच्छी तरह से ग्रहण कर सकें और अपनी बात को भी अच्छी तरह से दूसरों को समझा सकें। यदि हमें किसी वस्तु के यथार्थ स्वरूप को समझना है तो उसके अनेक पहलुओं को देखना होगा। एक पहलू से देखने से वस्तु के एक पहलू का ही ज्ञान होता है। यथा-- किसी मकान का एक तरफ से चित्र लेंगे तो वह चित्र मकान के एक पक्ष का ही ज्ञान करायेगा, जबकि दूसरा पक्ष अछूता ही रहेगा। एक मकान के यथार्थ एवं पूर्ण ज्ञान के लिए हमें मकान के चारों तरफ के अलग-अलग चित्र लेने पड़ेंगे तब जाकर हमें मकान की बाह्याकृति का पूर्ण ज्ञान होगा। फिर भी हम उसके अंतरंग भाग के ज्ञान से वंचित रह जायेंगे। अत: पुनः हमें उसके अंतरंग पक्ष के चित्र लेने पड़ेंगे, तब जाकर मकान का हमें पूर्ण एवं यथार्थ ज्ञान होगा। ठीक यही बात विश्व के सम्बन्ध में भी लागू होती है। जब तक हम विश्व का अनेक बिन्दुओं से, अनेक पहलुओं से सूक्ष्मतापूर्वक निरीक्षण नहीं करते हैं, तब तक हमें उसके सम्बन्ध में पूर्ण एवं यथार्थ ज्ञान होना असम्भव है। व्यक्ति, समाज, राष्ट्र एवं Jain Education International
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