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जयतिलकसूरि सागरचन्द्रसूरि
वस्तुपालतेजपालरास
विद्याविलासपवाडो
कलिकालरास
जम्बूस्वामीनुंविवाहलु
दर्शाणभद्ररास
पिप्पलगच्ट्रीय हीराणंदसूरि की कई कृतियाँ मिलती हैं, जैसे
रचनाकाल वि०सं० १४८४ ।
रचनाकाल वि० सं०
१४८५ ।
रचनाकाल वि० सं०
१४८६ ।
रचनाकाल वि० सं०
१४९४ ।
रचनाकाल अज्ञात ।
स्थूलभद्रबारहमास
रचनाकाल अज्ञात ।
अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में उन्होंने अपने को पिप्पलगच्छीय वीरदेवसूरि का प्रशिष्य और वीरप्रभसूरि का शिष्य बतलाया है
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गुणरत्नसूरि आनन्दमेरु
पिप्पलगच्छ का इतिहास
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[वि० सं० १४८४ / ई० सन् १४२८ में सिंहासनद्वात्रिंशिका के रचनाकार ]
वीरदेवसूरि I
: ६७
इसी गच्छ के आनन्दमेरुसूरि ने वि०सं० १५१३ / ई० सन् १४५७ में कालकसूरिभास की रचना की । इसकी प्रशस्ति मेंउन्होंने खुद को गुणरत्नसूरि का शिष्य बतलाया है
वीरप्रभसूरि I
हीराणंदसूरि [ ग्रन्थकार ]
[वि० सं० १५१३ / ई० सन् १४५७ में कालकसूरिभास के रचनाकार ]
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