Book Title: Sramana 1996 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 118
________________ श्रमण पुस्तक समीक्षा भारतीय जीवन मूल्य, लेखक-डॉ० सुरेन्द्र वर्मा, प्रकाशक-पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, पृष्ठसंख्या-२१७, मूल्य ७५ रु०, प्रकाशन वर्ष १९९६। यह ग्रन्थ दश अध्यायों में विभक्त है, प्रथम अध्याय में मूल्यों के स्वरूपनिर्धारण के प्रसंग में दर्शन के क्षेत्र में मूल्य मीमांसा करने की अपेक्षा उसकी अर्वाचीनता, पाश्चात्य दर्शन में उसका सूत्रपात, प्लेटो, नीत्शे, अरस्तू, स्टोइक, एपीक्यूरियन, कांट तथा हीगल आदि दार्शनिकों में मूल्यबोध आदि महत्त्वपूर्ण इतिहास की खोज की गई है। उन्नीसवीं शताब्दी में ही मूल्यमीमांसा एक स्वतन्त्र शास्त्ररूप से उभरने लगा - इस तथ्य का ग्रन्थकार ने संकेत कर अनेक मूल्यमीमांसा विषयक ग्रन्थों का विवरण दिया है। भारतीय दर्शन में मूल्यबोध का सूत्रपात वेद से होता है। इस तथ्य को प्रमाणित करते हुए सत् श्रेयस, ऋत, धर्म-इन शब्दों को मूल्यबोध का प्रतीक मानकर उनकी व्याख्या की गई है। मूल्यों की आरोपणविषयता, नियोजकता, प्राप्य आदर्शरूपता तथा अनेकता आदि विषयों की सम्यक् विवेचना कर मूल्य का अधिष्ठान क्या है विषय अथवा विषयी इस महत्त्वपूर्ण विषय का ऊहापोहपूर्वक तर्कशुद्ध विवेचना की गई है। द्वितीय अध्याय में मूल्यार्थक विभिन्न पदों की विवेचना तथा धर्म, अर्थ और काम इस त्रिवर्ग की विस्तृत मीमांसा की गई है, काम अर्थ और अर्थ के सम्बन्ध में इस तथ्य की ओर विशेष रूप से इंगित किया गया है कि इन दोनों (काम और अर्थ) की मूल्यवत्ता इनके धर्म से संयुक्त होने पर ही है। तृतीय अध्याय में धर्म तथा अर्थ पुरुषार्थों का सविस्तार विवेचन किया गया है। इसी के अन्तर्गत ऋत, धर्म, नित्यधर्म, काम्यधर्म, नैमित्तिक धर्म, आपद्धर्म, धर्मस्रोत, अभ्युदय, नि:श्रेयस, अर्थ और धर्म का सम्बन्ध, अर्थ और अपरिग्रह आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर गम्भीर विवेचन प्रस्तुत किया गया है। चतुर्थ अध्याय में काम पुरुषार्थ का विस्तार से प्रतिपादन किया गया है और इसी सन्दर्भ में वात्स्यायन तथा चार्वाक के सुखवाद का सूक्ष्म अन्तर सुस्पष्ट किया गया है। इसी अध्याय में सौन्दर्य बोध मूलक सुख की तथा विभिन्न काव्यशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित रसास्वाद की भी सक्ष्म मीमांसा की गई है। पञ्चम अध्याय में मोक्षनामक चतुर्थ पुरुषार्थ का जिसका उद्भव उपनिषद्काल में हुआ था, विशद प्रतिपादन किया गया है। मोक्ष के स्वरूप के सम्बन्ध में दार्शनिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128