Book Title: Sramana 1996 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 122
________________ श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९६ : ११६ उपासकदशांग का समीक्षात्मक अध्ययन : डॉ० रज्जन कुमार, प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी। प्रथम सत्र की समाप्ति के बाद सायं ७ बजे स्थानीय मोहित विद्या मंदिर में संस्कार निर्माण व्याख्यानमाला के अन्तर्गत प्रो०सागरमल जैन ने 'धर्म का मर्म' विषय पर अपना सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया। प्रो० जैन ने इस अवसर पर धर्म के मर्म को समझाकर उसे अपने जीवन में उतारने के लिए समाज के हर वर्ग खासकर युवकों का आह्वान किया। आपने बताया कि आज जबकि समाज में धर्म के यथार्थरूप - समत्व को न पहचानकर केवल उसके बाह्य रूपों के आधार पर अलगाववादी ताकतें समाज के विखंडन के लिए आमादा हैं, युवकों का विशेष दायित्व बनता है कि वे धर्म के यथार्थ रूप को जन-जन में प्रचारित एवं प्रसारित करें। संगोष्ठी का द्वितीय सत्र २५ नवम्बर को प्रारम्भ हआ। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो०सागरमल जैन एवं संयोजन श्री मानमल कुदाल, उदयपुर ने किया। इस सत्र में निम्न पत्रों का वाचन हुआ। अंग आगम : एक भाषा वैज्ञानिक अध्ययन : डॉ जगतराम, भट्टाचार्य, प्रवक्ता, जैन विश्वभारती, लाडनूं। दृष्टिवाद का समीक्षात्मक अध्ययन डॉ० उदयचन्द जैन, रीडर, प्राकृत विभाग, सुखड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर। प्रश्नव्याकरणसूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन : प्रो० सागरमल जैन, वाराणसी। संगोष्ठी के तृतीय एवं अंतिम सत्र की अध्यक्षता डॉ० उदयचन्द्र जैन एवं संयोजन डॉ० रज्जनकुमार ने किया। इस सत्र में जिन तीन पत्रों का वाचन हुआ वे हैंसूत्रकृतांगसूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन : डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय, वाराणसी। विपाकसूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन : डॉ० सुरेश सिसोदिया, शोधाधिकारी, आगम, अहिंसा एवं समता संस्थान, उदयपुर। अनुत्तरोपपातिकसूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन : श्री अतुल कुमार, वाराणसी। संगोष्ठी का समापन युवाचार्यप्रवर श्री रामलाल जी म०सा० के आशीर्वचनों एवं संगोष्ठी संयोजक डॉ० सुरेश सिसोदिया के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। संगोष्ठी के सूत्रधार श्री इन्दरचन्द जी वैद ने आगन्तुकों का योग्य सम्मान किया। संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए डॉ० सुरेश सिसोदिया, श्री इन्दरचंद जी वैद एवं श्री सागरमल जी चपलोत निश्चय ही बधाई के पात्र हैं।te & Personal use DRIN चप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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