Book Title: Sramana 1996 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 34
________________ अनेकान्तवाद और उसकी व्यावहारिकता : ३१ प्रजातंत्र की रीढ़ चुनाव है। प्रजा के प्रतिनिधि प्रजा के द्वारा चयनित होकर विधान सभा और लोक सभा के सदस्य बनते हैं। उनसे यह अपेक्षा होती है कि वे अपने क्षेत्र की समस्याओं को सही रूप में सभा में प्रस्तुत करेंगे तथा समाज के हित के लिए अपने को समर्पित करेंगे। किन्तु बात ऐसी नहीं होती है। तथाकथित जनता के प्रतिनिधि अपनी कुर्सी की रक्षा में लगे रहते हैं और प्रजा को भूल जाते हैं, जिनके वे प्रतिनिधि होते हैं। वे दरअसल यह भी नहीं चाहते कि जनता उनके चुनाव में स्वतन्त्र रूप से अपना मतदान करे। मतदान केन्द्र तो प्रत्याशियों के पालतू गण्डे-बदमाशों द्वारा अधिकार में कर लिये जाते हैं। अत: चुनाव दिखावे का एक ढोल होता है जिसकी तेज ध्वनि समाज में हंगामा मचाती है। इस तरह राजनीति के क्षेत्र में भी एकान्तवाद का बोलबाला देखा जाता है। राजनीति का प्रवेश समाज में समाज के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए हुआ किन्तु वही राजनीति आज क्षुद्रता के दायरे में सिमटकर रह गयी है। यद्यपि प्रजातांत्रिक प्रणाली में तो एकान्तवादिता को स्थान ही नहीं मिला है। उसमें न तो हठवादिता है, न दुराग्रह है, न पक्ष प्रतिबद्धता है, न असहिष्णुता है और न अधिनायकवाद ही है। फिर भी आज के समाजनिर्माता अपनी स्वार्थता से वशीभूत होकर प्रजातन्त्र के अनेकांतिक दृष्टिकोण को ऐकांतिक बना दिये हैं। जबकि प्रजातंत्र को सही मायने में क्रियान्वित करने के लिए अनैकान्तिक दृष्टिकोण का होना जरूरी है। यदि प्रजातंत्र की नीव अनैकांतिक है, कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि बिना अनैकान्तिक दृष्टिकोण के प्रजातंत्र एक दिन भी क्रियाशील नहीं रह सकता। प्रजातांत्रिक प्रणाली में तो विरोध में भी अविरोध लाना पड़ता है, विभिन्नता में एकता के सूत्र पिरोने पड़ते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय सन्दर्भ में प्रत्येक देश, सष्ट, दल व गट केवल अपनी और अपने हितों की रक्षा और सरक्षा के बारे में चिन्तित है फिर चाहे उसके लिए दूसरों की बलि क्यों न दे दी जाए? आज भयानक से भयानक अस्त्रों-शस्त्रों का अनुसंधान हो रहा है। कई भयानक संहारक अस्त्र बन चुके हैं। प्रभुता की लालसा विश्व में कभी भी युद्ध की आग को भड़का सकती है। यद्यपि शस्त्र निर्माण की इस होड़ ने शक्ति संतुलन कायम कर दिया है। भयानक अस्त्रों के निर्माण ने सभी राष्ट्रों को सशंकित कर दिया है कि शस्त्रास्त्रों के इस संग्रह से कहीं मानव जाति का सर्वनाश न हो जाए। इतिहास के पन्नों में प्रथम एवं द्वितीय विश्वयुद्ध इसके मुख्य उदाहरण हैं। विश्व अनेक गुटों में बँटा हुआ है- समाजवाद, साम्यवाद, पूँजीवाद, लोकतंत्रवाद आदि। ये सभी प्रशासन प्रणाली और सामाजिक संगठन में सुधार की बात करते हैं और अपने को मानवजाति का परित्राता समझते हैं। प्रत्येक देश का प्रत्येक दल केवल अपने को व अपनी नीति और कार्यक्रमों को सर्वोत्तम मानता है। और एकमात्र उसे ही देश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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