Book Title: Sramana 1996 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
View full book text
________________
५६ :
श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९६
भोगंकरा भोगवती, सुभोगा भोगमालिणी। सुवच्छा वच्छमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा।।
स्थानांग, संपा० - मुनि मधुकर-अष्टम स्थान-९९/१ मेधंकरा मेधवती, सुमेघा मेघमालिणी। तोयधारा विचित्ता य, पुष्फमाला अणिंदिता।। -वही-१००/१ णंदुत्तरा च णंदा, आणंदा णंदिवद्धणा। विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया।। -वही-९५/२ इलादेवी सुरादेवी, पुढवी पउमावती। एगणासा णवमिया, सीता भद्दा य अट्ठमा।। -वही-९७/२। अलंबुसा मिस्सकेसी, पोंडरिगी य वारुणी । आसा सव्वगा चेव, सिरी हिरी चेव उत्तरतो।। -वही-९८२ वेंदृट्ठाइं सुरभिं जलथलयं दिव्वकुसुमणीहारिं। पइरंति समन्तेणं दसद्धवण्णं कुसुमवासं।।-आवश्यक नियुक्ति ५४६
।
गुण-भवणगहण! सुय-रयणभरिय! दंसण-विसुद्धरत्थागा। संघनगर! भदं ते, अखण्ड-चारित्त-पागारा।। -नंदीसूत्र, मुनि मुधकर-४ भह सीलपडागूसियस्स, तव-नियम-तुरगजुत्तस्स। संघ-रहस्स भगवओ, सज्झाय-सुनंदिघोसस्स।। -वही-६ संजम - तव - तुंबारयस्स, नमो सम्मत्त - पारियल्लस्स। अप्पडिचक्कस्स जओ, होउ सया संघ-चक्कस्स।। -वही-५ कम्मरय - जलोह - विणिग्गयस्स, सुय - रयण - दीहनालस्स। पंचमहव्वय - थिरकन्नियस्स, गुण - केसरालस्स।। -वही-७
सावग - जण - महुअरि - परिवुडस्स, जिणसूरतेयबुद्धस्स।
संघ - पउमस्स भई, समणगण - सहस्सपत्तस्स ।।-वही-८ Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128