Book Title: Sramana 1996 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 61
________________ ___ ५८ : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९६ वरवरिया घोसिज्जइ किमिच्छगं दिज्जए बहुविहीयं । सुरअसुर-देव-दाणव-नरिंदमहियाणनिक्खमणे ।। -आवश्यक नियुक्ति २१९ एगा हिरनकोडी अट्टेव अणूणगा सयसहसा । सूरोदयमाईअं दिज्जई जा पायरासाओ ।। -आवश्यक नियुक्ति २९७ तिन्नेव य कोडिसया अट्ठासीइंच हुंति कोडीओ। असिइं च सयसहस्सा एअं संवच्छरे दिण्णं ।। -वही-२२० महापउमे सूरदेवे सूपासे य संयपभे। सव्वाणुभूई अरहा देवस्सुए य होक्खई।। उदए पेढालपुत्ते य पोट्टिले सत्तकित्ति य। मुणिसुव्वए य अरहा सव्वभावविऊ जिणे।। अममे निक्कसाए य निप्पुलाए य निम्ममे। चित्तउत्ते समाही य आगमिस्सेण होक्खइ।। संवरे अणियट्टी य विजए विमले ति य । देवोववाए अरहा अणंतविजए इ य ।। एए वुत्ता चउव्वीसं भरहे वासम्मि केवली। आगमिस्सेण होक्खंति धम्मतित्थस्स देसगा।। -समवायांग, संपा० - मुनि मधुकर, ६६७/७४-७८ सुमंगले य सिद्धत्थे णिव्वाणे य महाजसे। धम्मज्झए य अरहा आगमिस्साण होक्खई।। सिरिचंदे पुष्फकेऊ महाचंदे य केवली। सुयसागरे य अरहा आगमिस्साण होक्खई।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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