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श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९६
एक कल्प और एक सागरोपम कही गयी है। यही विवरण ३३वें समवाय तक वर्णित है। प्रत्येक समवाय में इन जीवों की स्थिति समवाय की संख्या के अनुरूप बतायी गयी है। यद्यपि जीवों के नाम कहीं पृथक्-पृथक् हैं, कहीं कुछ जीवों को समाविष्ट कर लिया गया है तो कहीं कुछ जीवों को छोड़ दिया गया है। यह सम्पूर्ण विवरण लगभग ७१ सूत्रों या सूत्रांशों में (सूत्रों में पदों की संख्या समान नहीं) वर्णित हैं। तैतीसवें समवाय के दो सूत्रों के विवरण की उपस्थिति में अन्य सभी ६९ सूत्रों के विवरण अनावश्यक से प्रतीत होते हैं।
पुनरावृत्ति की दृष्टि से स्थानाङ्ग का पुद्गल सम्बन्धी विवरण भी उद्धृत किया जा सकता है। स्थानाङ्ग के सभी स्थानों- एक से दस तक-के अन्त में 'पुद्गलपद' के अन्तर्गत पुद्गल सम्बन्धी विवरण प्रतिपादित है। प्रथमस्थान में एकप्रदेशावगाढ, एक समय की स्थिति, एक गुण, एक वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं। इसीप्रकार द्विप्रदेशी आदि से लेकर दस प्रदेशी आदि पुद्गल अनन्त कहे गये हैं। एक से लेकर दस स्थानों में यह विवरण २७ सूत्रों में प्रतिपादित है, जबकि अन्तिम पाँच सूत्रों की उपस्थिति में शेष २२ सूत्र अनावश्यक प्रतीत होते हैं।
यद्यपि उक्त दोनों उदाहरण भाव में पुनरावृत्ति के ही निदर्शक हैं परन्तु प्रत्येक समवाय और स्थान में संख्या परिवर्तन से इन्हें पुनरावृत्ति मानने में आपत्ति हो सकती है।
इन दोनों उदाहरणों के अतिरिक्त स्थानाङ्ग में बहुत से उदाहरण हैं जिनकी पुनरावृत्ति हुई है। स्थानाङ्ग में पुनरावृत्त सभी पदार्थों का विवरण प्रस्तुत करने से पूर्व, विषय को स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख उदाहरणों को प्रस्तुत किया जा सकता है। स्थानाङ्ग में लोकस्थिति का चार, प्रायश्चित्त का पाँच और तृण-वनस्पति का तीन स्थलों पर विवरण संग्रहीत है, जिनको निम्न तालिकाओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
६/३६
८/१४
लोकस्थिति विवरण - स्थानाङ्ग ३/२/३/९ (१) आकाश पर वायु (२) वायु पर उदधि (३) उदधि पर पृथ्वी
४/२/२५९ → →
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(४) पृथ्वी पर त्रस
और स्थावर
→
(५) अजीव जीव
पर प्रतिष्ठित
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