Book Title: Sramana 1996 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
View full book text
________________
४६ : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९६
वयसुप्पणिहाणे, कायसुप्पणिहाणे, - ३/९८ ।
एवं संजयमणुस्साणति-४/१/१०५। २०. तिविहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते, तं जहा - मणदुप्पणिहाणे, वयदुप्पणिहाणे,
कायदुप्पणिहाणे, ३/९९, स्थानाङ्ग। * चउब्विहे, ....... उवकरणदुप्पणिहाणे-४/१/१०६।
१. स्थानाङ्ग, ३/३/३६१ (१-३), ४/१/५८ (१-४)। * तओ अवायणिज्जा पण्णत्ता, तं जहा - अविणीए, विगतीपडिबद्धे, अतिओसवित
पाहुडे, ३/४/४७६। * चत्तारि, ...... विपाहुडे, माई, ४/३/४५२। २२. तओ कप्पंति वाइत्तए, तं जहा - विणीए, अविगतीपडिबद्धे, विओसविय पाहुडे।
-३/४/४७७ स्थानाङ्ग। * चत्तारि, ....... अमाई, ४/३/४५३। २३. तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं जहा-इहलोगपडिबद्धा, परलोगपडिबद्धा, दुहतो
लोग पडिबद्धा, ३/२/१८०। । चउव्विहा, अप्पडिबद्धा-४/४/५७१। * तिविहा, पुरतो पडिबद्धा, मग्गतो पडिबद्धा, दुहओ पडिबद्धा, ३/२/१८१। ___चउव्विहा ....... अप्पडिवद्धा। ४/४/५७२।
तिविहा , तुयावइत्ता, पुयावइत्ता, बुआवइत्ता, ३/२/१८२। * चउब्बिहा........ परिपुयाबइत्ता, ४/४/५७४।
तिविहा ...... ओवातपव्वज्जा, अक्खातपव्वज्जा, संगारपलज्जा, ३/२/१८३। * चउव्विहा ...... विहगगइपन्वण्णा। –४/४/५७३। * चउव्विहा..... णडखइया, भडखइया, सोहखइया, सियालखइया ४/४/५७५ । २४. स्थानाङ्ग सूत्र ३/१/७४-८६ एवं ४/३/४३५-४४९। २५. चउव्विहा खुड्डपाणा पण्णत्ता, तं जहा - बेदिया, तेइंदिया,
चउरिंदिया, संमुच्छिमपंचिंदिय तिरिक्ख जोणिया। –४/४/५५२। * छव्विहा ....... तेउकाइया, वाउकाइया। –६/६८ स्थानाङ्ग। २६. चत्तारि अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-हेमवते, हेरण्णवते, हरिसवरिसे
रम्मगवरिसे। -४/३०७, स्थानाङ्ग।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128