Book Title: Sramana 1995 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 21
________________ भक्तामरस्तोत्र : एक अध्ययन : १९ ३१. तत्रैव - २४ ३२. भागवतपुराण ८. ३. ६ ३३. भक्तामरस्तोत्र ३, ४, ५, ६ ३४. भागवत् पुराण १०. २६. ४१ ३५. भक्तामरस्तोत्र ५, १३ ३६. तत्रैव - १५ ३७. तत्रैव - १७, १८ ३८. अग्निपुराण - ३३७, ३३ ३६. साहित्यदर्पण - ६, ३१४ ४०. काव्यानुशासन - ८. १० ४१. भक्तामरस्तोत्र - २८ ४२. तत्रैव - २२ ४३. तत्रैव - ५ ४४. तत्रैव - १७ ४५. तत्रैव - १० ४६. तत्रैव - २५ ४७. तत्रैव - १६ ४८. तत्रैव - १७ ४६. तत्रैव - २१ ५०. भागवत महापुराण - १०. २६ ५१. तत्रैव - १. ६. ४२ ५२. भक्तामरस्तोत्र - ७ ५३. तत्रैव - १२ ५४. तत्रैव - ४७ ५५. तत्रैव - ४३ ५६. तत्रैव - ४४ ५७. तत्रैव - ४८ ५८. तत्रैव - २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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