Book Title: Sramana 1995 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 80
________________ ७८ : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९५ ( ग ) द्रौपदी विषयक साहित्य १. वैदिक साहित्य वैदिक परम्परा का अनुसरण करने वाली कृतियों में द्रौपदी कथा सर्वप्रथम महाभारत में ही मिलती है और उसी को आधार बनाकर परवर्ती रचनाकारों ने द्रौपदी का चित्रण भी किया है । बाद की रचनाओं में कुछ तो पाण्डवों की सम्पूर्ण कथा का वर्णन करती हैं और कुछ तो घटना विशेष को आधार बनाकर ही लिखी गयी हैं। ऐसी रचनाओं में द्रौपदी का उल्लेख प्रसंगवश हुआ है। कुछ प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं- महाभारत, किरातार्जुनीयम् (भारवि५वीं शती का मध्यकाल ), वेणीसंहार ( भट्टनारायण ७५० ई० ), बालभारत ( राजशेखर ८८०-१२० ई० ), भारतमञ्जरी ( क्षेमेन्द्र १०२५-१०६६ ई० ), युधिष्ठिरविजयम् ( वासुदेव १२वीं शताब्दी ), भारतचम्पू ( अनन्तभट्ट १५वीं शताब्दी ) आदि । २. जैन साहित्य द्रौपदीविषयक जैन साहित्य को हम निम्न चार वर्गों में वर्गीकृत कर सकते हैं १. पहले वर्ग में वे कृतियाँ हैं, जिनमें द्रौपदी के पूर्वभवों से प्रमुख भव नागश्री और सुकुमालिका के वृत्तान्त क्रमशः जीववध के दुष्परिणामों और श्रमणी वेश में शिथिलाचरण के दुष्परिणामों के दृष्टान्त रूप में वर्णित हैं । २. दूसरे वर्ग में, वे ग्रन्थ हैं, जिनमें २४ तीर्थंकरों से सम्बद्ध दश . आश्चर्यों के प्रसंग में पञ्चम आश्चर्य, जिसमें प्रचलित मान्यता के विपरीत एक साथ दो क्षेत्रों के वासुदेव एक क्षेत्र में उपस्थित होते हैं, के प्रसंग में द्रौपदी का वृत्तान्त प्राप्त होता है । ३. तीसरे वर्ग में वे ग्रन्थ हैं, जो सम्पूर्ण पाण्डवचरित का चित्रण करते हैं और जिनमें प्रसंगवश द्रौपदी का वृत्तान्त प्राप्त होता है । ४. चौथे वर्ग में महाभारत के किसी घटना विशेष को आधार बनाकर रचित ग्रन्थ सम्मिलित हैं. I द्रौपदीविषयक प्रमुख जैन कृतियाँ इस प्रकार हैं स्थानाङ्गसूत्र, ज्ञाताधर्मकथा, प्रश्नव्याकरण, कल्पसूत्र, हरिवंशपुराण, द्विसन्धानमहाकाव्य, उत्तरपुराण, आख्यानकमणिकोश, निभर्यभीमव्यायोग, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पाण्डवचरित, बालभारत, द्रौपदी स्वयंवर, पाण्डवपुराण आदि । इसके अतिरिक्त ज्ञाताधर्मकथा, प्रश्नव्याकरण और कल्पसूत्र की टीकाओं में द्रौपदी वृत्तान्त प्राप्त होता है । (ग) वैदिक और जैन परम्परा में द्रौपदी कथा में साम्य द्रौपदी कथानक में साम्य की दृष्टि से दोनों परम्पराओं में वर्णित कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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