Book Title: Sramana 1995 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 79
________________ द्रौपदी कथानक का तुलनात्मक अध्ययन : ७७ परिवर्तन तथा परिवर्धन किया। इसका स्पष्ट समाधान यही है कि जैनाचार्यों ने इन पात्रों के जीवन को अपनी निवृत्तिमार्गी परम्परा में ढाला है। हम पाते हैं कि द्रौपदी का चरित्र महाभारत के सभी पात्रों में अत्यन्त अनूठा एवं सशक्त है। उसके चरित्र की विविधता एवं विलक्षणता से सभी अभिभूत हैं | महाभारत के युद्ध में उसकी प्रमुख भूमिका निर्णायक कही जा सकती है, फिर भी वह अपना सम्पूर्ण जीवन एक पतिव्रता गृहस्थ नारी के रूप में ही जीती है। किन्तु जैन परम्परा में उसे अपने पूर्वभव में एवं वर्तमान में एक संन्यासिनी के रूप में चित्रित किया गया है। जैन परम्परा में अपने पूर्वभव में साध्वी जीवन में शिथिलाचार सेवन करने से और मुनि को विषैला आहार देने से न केवल दुर्गति की पथिक बनती है, अपितु उसके उस जीवन पर भी कुप्रभाव पड़ता है। अपने पूर्व जन्म के संकल्प के कारण वह पाँच पतियों की पत्नी बनती है और अनेक कटु सत्यों को भोगती है। अन्त में संन्यास ग्रहण कर वह सन्मार्ग की पथिक बन जाती है। इस प्रकार जैन परम्परा में उसके जीवनवृत्त पर निवृत्तिमार्ग का प्रभाव स्पष्ट देखा जाता है। दोनों परम्पराओं में द्रौपदी-चरित के स्वरूप में कितना साम्य तथा कितना वैषम्य है, इसका अध्ययन हमने प्रस्तुत शोधप्रबन्ध में किया है। ( क ) वैदिक परम्परा में द्रौपदी कथा वैदिक परम्परा में द्रौपदी एक क्षत्राणी के रूप में चित्रित है, जिसके अन्दर स्वाभिमान का भाव कूट-कूट कर भरा हुआ है। उसे अपमानित होना कदापि सह्य नहीं है, इसीलिए वह प्रतिशोध हेतु दृढ़-संकल्प करती है, जिसके लिए वह पाण्डवों को निरन्तर प्रेरित करती रहती है। उसकी प्रतिज्ञा के फलस्वरूप महाभारत का युद्ध होता है। पाण्डवों के सारे क्रिया-कलापों में सहधर्मिणी, उनके सुख-दुःख की सहगामिनी द्रौपदी उनकी प्रेरणास्रोत है तथा उनकी शक्ति का केन्द्र वही है। द्रौपदी पाँच पतियों की पत्नी होते हुए भी, महासती के रूप में समादृत है। पाँच पतियों की पत्नी होना, उसके गौरव में वृद्धि ही करता है, न कि उसके चरित्र की दुर्बलता का प्रकाशन । ( ख ) जैन परम्परा में द्रौपदी कथा जैन साहित्य में द्रौपदी की कथा, वैदिक साहित्य से कुछ भिन्नता लिये हुए है। वहाँ द्रौपदी पाँच पतियों की पत्नी होते हुए भी सोलह महासतियों में से प्रमुख गिनी जाती है। जैन साहित्य में द्रौपदी के अनेक पूर्वजन्मों की कथा वर्णित है। उन अनेक पूर्वजन्मों के पश्चात् ही वह अपने वर्तमान जीवन को प्राप्त करती है। जैन-परम्परा में मोक्ष मार्ग की साधना में स्त्रियों को अर्गला माना गया है एवं उन्हें हेय दृष्टि से देखा गया है। द्रौपदी के पूर्वभवों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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