Book Title: Sramana 1995 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 69
________________ अर्धमागधी भाषा में सम्बोधन का एक विस्मृत शब्द-प्रयोग : ६७ वैसे आगम ग्रन्थों में 'आयुष्मन्' शब्द के लिए सम्बोधन के तीन रूप मिलते हैं- आउसो, आउसन्तो और आउसं। 'आउसं' के साथ 'तेणं' का प्रयोग मिलता है जबकि अन्य दो रूप अकेले ही प्रयुक्त हुए हैं। आउसो' और 'आउसन्तो' शब्द एकवचन या बहुवचन (सम्मानार्थे भी) दोनों के लिए समान रूप में प्रयुक्त हुए हैं, चाहे वह गृहपति, भिक्षु, भ० महावीर, अन्य तीर्थिक, गणधर, निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी हों। ऐसे प्रयोगों के उदाहरण जिनमें 'आउसो' या 'आउसन्तो' में वचन भेद नहीं किया गया है। (i) आचारांग के प्रयोग ( म० जै० वि० संस्करण ) 'आउसो' भिक्षु द्वारा गृहपति के लिए या कम्मकरी के लिए सूत्र नं. ३६०, ३६८, ३६२ 'आउसंतो गाहावती' भिक्षु द्वारा गृहपति के लिए सूत्र नं.४४५, ४८२, ४८६ 'आउसंतो समणा' गृहपति द्वारा भिक्षु के लिए सूत्र नं २०४, ४७७-४८१ 'आउसंतो' एक भिक्षु द्वारा दूसरे भिक्षु के लिए सूत्र नं० ३६६, ५०२ (ii) सूत्रकृतांग के प्रयोग ( म० जै० वि० संस्करण ) 'आउसो' सामान्य व्यक्ति द्वारा सामान्य व्यक्ति के लिए, सूत्र नं० ६५० "समणाउसो' भगवान महावीर द्वारा निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के लिए सूत्र नं० ६४४ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के द्वारा भगवान महावीर के लिए सूत्र नं० ६४४ 'आउसो' गणधर गौतम द्वारा उदक पेढाल पुत्र द्वारा गणधर गौतम के लिए सूत्र नं० ८४५, ८४६ उदक पेढालपुत्र द्वारा गणधर गौतम के लिए सूत्र नं० ८४५, ८४६ 'आउसंतो' उदक पेढालपुत्र द्वारा गणधर गौतम के लिए सूत्र नं० ८४५-८४८ गणधर गौतम द्वारा उदक पेढालपुत्र के लिए सूत्र नं० ८४८, ८५२ भगवान महावीर द्वारा उदक पेढालपुत्र के लिए सूत्र नं० ८६७, ८६६ भगवान महावीर द्वारा निर्ग्रन्थों के लिए, सूत्र नं० ८५५ पालिशब्दकोश के अनुसार पालि भाषा में भी 'आवुसो' (प्राकृत - आउसो) और 'आयुस्मन्त' के प्रयोग वचन-भेदरहित हैं। 'आयुस्मन्सो' (प्राकृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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