Book Title: Sramana 1995 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 72
________________ चातुर्मास : स्वरूप और परम्पराएँ - कलानाथ शास्त्री राजस्थान में ही नहीं समूचे देश में विशेषकर उत्तर भारत में वर्षा ऋतु के चार महीने विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के केन्द्र बन जाते हैं। यही वह समय होता है जब सभी धर्मों के तपस्वी साधु-संन्यासी अपनी निरन्तर यात्राओं से विरत होकर एक ही स्थान पर चार मास तक रहते हैं और वहाँ के श्रद्धालुओं को धर्मोपदेश देते हैं। इसे चातुर्मास्य करना या चौमासा करना कहते हैं। इन चार मासों में इसी कारण अनेक धार्मिक रीति-रिवाज, आचार-परम्पराएँ और उत्सव समाहित हो गये हैं। इसका एक कारण तो प्राचीन भारत की इस सामाजिक स्थिति में तलाशा जा सकता है कि वर्षा से रास्ते रुक जाने और यात्राओं के प्रचुर और सशक्त साधन उपलब्ध न होने के कारण इन चार मासों में यात्राएँ नहीं की जाती थीं। यायावर साधु-संन्यासी एक जगह स्थिर हो जाते थे। तीर्थयात्राएँ बन्द हो जाती थीं तथा दूर जाकर गुरुओं से पढ़ने की स्थिति भी नहीं बनती थी। इसी परम्परा में वेदकाल का वह वर्षाकालीन स्वाध्याय भी आता है जिसे आज भी श्रावणी या उपाकर्म कहा जाता है। उस समय श्रावणी पूर्णिमा से वेद के पुनर्नुशीलन का क्रम चलता था। इसी के साथ भाद्रपद मास में वेदकालीन ऋषि अपने तपोवनों में अपने शिष्यों के साथ अनेक प्रकार की तैयारियों करते थे, जिनमें वर्ष भर के यज्ञ सम्बन्धी कार्यों के लिए दर्भ तोड़कर लाना भी सम्मिलित था क्योंकि वर्षाकाल में कुशों और वनस्पतियों की सहज वृद्धि होती थी। रस्म के रूप में आज भी भाद्रपद की अमावस्या को यह कार्य किया जाता है जिसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। इस प्रकार वैदिक काल से ही चातुर्मास शताब्दियों तक यज्ञ और स्वाध्याय की परम्पराओं से जुड़ा. रहा। आज भी उस परम्परा में शंकराचार्य आदि संन्यासी धर्मगुरु इन दिनों एक स्थान पर ही निवास करते हैं और धर्मोपदेश करते हैं। ये चौमासा कब शुरू होता है इस बारे में दो परम्पराएँ हैं। एक परम्परा आषाढ़ शुक्ल द्वादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चातुर्मास मानती है और दूसरी परम्परा आषाढ़ मास की संक्रान्ति से ( वह कभी भी हो ) कार्तिक मास की सूर्य संक्रान्ति तक चातुर्मास मानती है। श्वेताम्बर परम्परा में श्रावण वदी प्रतिपदा से कार्तिक पूर्णिमा तक चातुर्मास माना जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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