Book Title: Sramana 1995 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 56
________________ ५४ 4 श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९५ गुरु- परम्परा की तीन अलग-अलग तालिकायें संगठित की जा सकती हैं, जो निम्नानुसार हैं : तालिका : १ तालिका : २ गुणदत्तसूरि ( वि० सं० १५२३ ) तालिका : ३ Jain Education International ? भुवनानन्दसूरि 1 पद्मचन्द्रसूरि ( वि० सं० १३६६ ) रत्नाकरसूरि (वि० सं० १४१५ ) I रत्नप्रभसूर ( वि० सं० १४२२ - १४४७ ) सिंहदत्तसूरि ( वि० सं० १४६६- १४८३ ) ? T उदयदेवसूरि ( वि० सं० १४४६ - १४५३ ) T गुणसागरसूरि ( वि० सं० १४८३ - १४८५ -१४८६ ) I गुणसमुद्रसूरि ( वि० सं० १४६२ - १५१६ ) 1 गुणदेवसूरि ( वि० सं० १५१७- १५३५ ) ? I पद्माणंदसूरि ( वि० सं० १४८४ - १४६६ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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