Book Title: Sramana 1995 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 30
________________ २८ : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९५ सोमप्रभसूरि विबुधप्रभसूरि मुनिधर्मकुमार (वि० सं० १३३४/ई० सन् १२७८ में शालिभद्रचरित्र के रचनाकार ) यह उपशाखा भी १२वीं-१३वीं शताब्दी में विद्यमान थी, परन्तु उसका सम्बन्ध पूर्वकथित दो अन्य उपशाखाओं से क्या रहा, इसका पता नहीं चलता। प्रबन्धचिन्तामणि ( रचनाकाल वि० सं० १३६१/ई० सन १३०५ ) के रचनाकार मेरुत्तुंगसूरि भी इसी गच्छ के थे। ग्रन्थ की प्रशस्ति में उन्होंने अपने गच्छ, ग्रन्थ के रचनाकाल के साथ-साथ अपने गुरु चन्द्रप्रभसूरि का भी उल्लेख किया है। लेकिन इसके अतिरिक्त अपने गच्छ की परम्परा के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा है। उत्तरमध्यकाल में भी इस गच्छ से सम्बद्ध साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्य प्राप्त होते हैं। इनका अलग-अलग विवरण इस प्रकार है - गुणदेवसूरि के शिष्य गुणरत्नसूरि द्वारा मरु-गुर्जर भाषा में रचित अषभरास और भरतबाहुबलिरास ये दो कृतियाँ मिलती हैं ।४६ गुणरत्नसूरि के शिष्य सोमरत्नसूरि ने वि० सं० १५२० के आस-पास कामदेवरास की रचना की। इसी प्रकार गुणदेवसरि के एक अन्य शिष्य ज्ञानसागर द्वारा वि० सं० १५२३/ई० सन् १४६७ में जीवभवस्थितिरास और वि० सं० १५३१/ई० सन् १४७५ में सिद्धचक्रश्रीपालचौपाई की रचना की गयी। गुणदेवसूरि गुणरत्नसूरि (ऋषभरास एवं भरत- ज्ञानसागर (वि०सं० १५२३ में जीवभव. बाहुबलिरास के रचनाकार ) स्थितिरास एवं वि० सं०१५३१ में सिद्धचक्र. श्रीपालचौपाई के कर्ता) सोमरत्नसूरि ( वि० सं० १५२० के आसपास कामदेवरास के कर्ता ) अकोटा से प्राप्त धातु की दो जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख को नागेन्द्रकुल का पुरातन अभिलेखीय साक्ष्य माना जा सकता है। डॉ० उमाकान्त शाह ने इनकी वाचना दी है। जो निम्नानुसार है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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