Book Title: Sramana 1995 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 20
________________ १८ : श्रमण/ जुलाई-सितम्बर/१९९५ से मुक्ति६ शारीरिक सौन्दर्य एवं गुणलक्ष्मी की उपलब्धि होती है। अन्त में भक्त मृत्यु को जीतकर परमानन्दमय-निकेतन में शाश्वत विश्राम पा लेता है। पादटिप्पण १. श्रीमद्भागवत् महापुराण १. ८. २५ २. श्री भक्तामरस्तोत्र, मानतुङ्गाचार्यकृत, अनेक स्थलों से प्रकाशित । ३. श्री मद्भागवतपुराण ८. ३ ४. भक्तामरस्तोत्र - ३ ५. तत्रैव - ५ ६. तत्रैव - ६ ७. तत्रैव - २ ८. तत्रैव - २० ६. तत्रैव - ४ १०. शिवमहिम्नस्तोत्र - ३२ ११. भक्तामरस्तोत्र - १४ १२. श्रीमदभागवत महापुराण - १. ६. ३३ १३. भक्तामरस्तोत्र - ११ १४. तत्रैव - १२ १५. तत्रैव - १३ १६. तत्रैव - १० १७. तत्रैव - १५ १८. तत्रैव - १४ १६. तत्रैव -८, १६, २१ २०. तत्रैव - २६ २१. तत्रैव - २६ २२. श्रीमद्भागवत महापुराण - १. ७. २२ २३. तत्रैव - १. ८.६ २४. श्री भक्तामरस्तोत्र ४० २५. तत्रैव - २७ २६. तत्रैव - १८ २७. तत्रैव - १६ २८. तत्रैव - २३ २६. तत्रैव - १६ ३०. तत्रैव - २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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