Book Title: Sramana 1995 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 22
________________ नागेन्द्रगच्छ का इतिहास डॉ० शिवप्रसाद उत्तर भारतीय निर्ग्रन्थ संघ के अल्पचेल ( बाद में श्वेताम्बर ) सम्प्रदाय के अन्तर्गत नागेन्द्रकुल (बाद में नागेन्द्रगच्छ) का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान था। अब से लगभग ४०० वर्ष पूर्व तक विद्यमान इस गच्छ की उत्पत्ति कोटिक गण के नाइल ( नागिल्य - नागेन्द्र ) शाखा से हुई, ऐसा माना जाता है। पर्दूषणाकल्प' की “स्थविरावली'२ ( जिसका प्रारम्भिक भाग ई० सन् १०० के बाद का माना जाता है ) के अनुसार आर्यवज के प्रशिष्य और आर्य वज्रसेन के शिष्य आर्य नाइल से नाइली शाखा का उद्भव हुआ। देववाचककृत नन्दीसूत्र की “स्थविरावली' ( रचनाकाल प्रायः ई० सन् ४५० ) में भी इसका उल्लेख प्राप्त होता है तथापि वहाँ इसे नाइलकुल कहा गया है। ऐसा मालूम होता है कि पाँचवी-छठी शताब्दी से कुछ शाखाएँ कुल कहलाने लगी थीं और गुप्तयुग के पश्चात् तथा मध्ययुग के प्रारम्भपूर्व तथा मध्ययुग की शुरुआत में नागेन्द्रकुलरूपेण ही उल्लेख प्राप्त होता है और इससे सम्बद्ध अनेक साक्ष्य मिलने लगते हैं। नन्दीसूत्र की स्थविरावली' में आर्य नागार्जुन (जिनकी अध्यक्षता में ई० सन् की चतुर्थ शताब्दी के तृतीय चरण में आगम ग्रन्थों के संकलन के लिये वलभी में वाचना हुई थी) और उनके शिष्य आर्य भूतदिन को नाइलकुल का बतलाया गया है। आर्य नाइल के पश्चात् और आर्य नागार्जुन के पूर्व इस कुल में कौन-कौन से आचार्य हुए इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। ठीक यही बात आर्य भूतदिन के पट्टधर परम्परा के विषय में भी कही जा सकती है। उक्त साक्ष्यों के आधार पर नागेन्द्रकुल के प्रारम्भिक आचार्यों को निम्नलिखित क्रम में रखा जा सकता है - आर्य वज्र कल्पसूत्र 'स्थविरावली' । आर्य वज्रसेन ( ई० सन् की प्रथम शताब्दी) आर्य नाइल ( नागेन्द्र) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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