Book Title: Sramana 1992 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 30
________________ 28 जैनमत ' (भगवती आराधना ३, ४२१, ६१५ - ६ ) ' में स्त्री को पुरुष से कनिष्ठ माना गया है; क्योंकि वह अपनी रक्षा स्वयं नहीं कर सकती और दूसरों की इच्छा का विषय बनती है। उसमें स्वभावतः भय रहता है, दुर्बलता रहती है। पुरुष में यह बात नहीं होती, इसलिए वह स्त्री से ज्येष्ठ होता है । कुरलकाव्य (६.१, ६, ७ ) के अनुसार मात्र चारदीवारी के अन्दर परदे में रहने से भी स्त्रियों की रक्षा सम्भव नहीं; उसका सर्वोत्तम रक्षक इन्द्रिय-निग्रह ही है। श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १६६२ १. भगवती आराधना शिवार्य, सं. एवं अनु. पं. कैलाशचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री जीवराज जैन राना (हिन्दी) सं. ३७, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, सं.प्र. १६७८, खण्ड ११ २. कुरलकाव्य- एलाचार्य, अनु. प. गोविन्दराय जैन, नीतिधर्म ग्रन्थमाला सं. १, प्र. अनुवादक, महरौनी, झांसी, प्र. सं. १८५७, परि ६/५-८ । For Private & Personal Use Only - Jain Education International www.jainelibrary.org

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