Book Title: Sramana 1992 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 56
________________ 54 अपनी-अपनी भाषा में प्रस्तुत किये गये वर्णन है। इसी शैली से सम्बद्ध एक कृति यहां ! की जाती है, जिसमें अण्डकमल्ल नामक एक जैन श्रेष्ठिपुत्र के गुण-वर्णन के प्रसंग में (गुजराती - मराठी), पूर्वी, मुलतानी व पहाड़ी भाषा में तद्देशीय स्त्रियों के संवाद प्रस्तुत कृति सं. 1570 में लिखे हुए एक गुटके में मिली है, जो कांगड़ानगर-कोट के आस-पास पंजाब प्रान्त में ही लिखा हुआ है । इस कृति का नायक अण्डकमल्ल सहजपाल का पौत्र और संघपति तेजपाल का पुत्र इसका वंश अत्यन्त प्रतिष्ठित और सुलतान सनाख्त (राजमान्य) था, उसी की महिमा वर्णित है। यह अरडकमल्ल चौदह विद्या निधान, दानेश्वर, षड्भाषाविद् और भोगपुरन्दर रचना में इसके दिल्ली निवासी होने का स्पष्ट उल्लेख है । अरडकमल्ल का विशेष परिचय के अतिरिक्त प्राप्त नहीं है। यह गुटका सं. 1570 का लिखा हुआ होने से यह कृति पन्द्रह सोलहवीं शती की निर्मित मालूम होती है। इसी काल में अरडकमल्ल नाम के एक बुद्धि व्यक्ति हुए हैं, जो श्रीमाल वंशीय जैन थे, इनकी अभ्यर्थना से श्री जिनप्रभसूर शाखा "चरित्रवर्द्धन गणि" नामक विशिष्ट विद्वान ने 'रघुवंश' काव्यवृति की रचना की है। ये तेजप के पौत्र और सलिग के पुत्र थे । नाम और समय साम्य के बावजूद भी बाप-दादों के नाम थोड़ा अन्तर दोनों अरडकमल्ल को अभिन्न मानने के लोभ का संवरण करा देता है। श्रमण, जुलाई-सितम्बर, इस कृति के बाद यहाँ सं. तेजपाल विषयक छंद इसी गुटके से उद्धृत किया जाता है, कवि पल्ह की रचना है। इस 7 (2+5) पद्यों वाली कृति में सं. तेजपाल को सं. सहजप का पुत्र लिखा गया है। अरडकमल्ल छंद के रचयिता कवि छल्ह हैं। ऐसे नाम तत्कालीन कवि में हुआ करते थे। इसी गुटके में सल्ह, नल्ह, विल्ह, पल्ह आदि की कृतियां विद्यमान संभवतः यें कवि भाट या भोजक जाति के होंगे। इस कृति के प्रारम्भ में पुव्वणी, उत्तरणी, पचाधणी और दक्षिणी स्त्रियों का वर्णन उनकी भाषा के सन्दर्भ में पूर्वी बोली में भोजपुरी - अवधी, उत्तरी में पहाड़ी बोली, जिसके में नगरकोट, धींगोट और मालोट का नामोल्लेख मिलता है । छन्द में उत्तरणी और उत्तराधाि नाम का प्रयोग किया गया है । मुलतानी के लिये पचाधणि शब्द प्रयोग किया गया है, जो पश्चिमिनी का पर्याय है, पर अब इस का प्रयोग लुप्त हो गया मालूम होता है। दक्षिणी में गुर्जरी स्त्री के संवाद है, पहले वर्णन में प्रारम्भ की 2-3 पंक्तियाँ मराठी भाषा में और बाद की प्राचीन राजस्थानी या गुजराती में हैं। इस कृति में व्यवहृत भाषा पांच सौ वर्ष पुरानी है, जो भाषाविकास के दृष्टिकोण से अपना विशेष महत्व रखती है। आशा है, विद्वान् भाषा - शास्त्री लोग इस विषय में विशेष प्रकाश डालेंगें । इस गुटके में कवि छह कृत एक गूढ़ार्थ छंद लिखा मिला है, जिसे यहाँ उद्धृत किया जाता है : Jain Education International उत्तम पुरष प्रगट प्रिथवीमहि, सण सहायउ सदा सरंग । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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