Book Title: Sramana 1992 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 57
________________ भवर लाल नाहटा निति उठि नीर पिवइ सो घर घर, अहि भोजन न सुहाइ अंग। हयैईसीमधर जिवई जतन जासे नित, चलण विहूणउ भमइ विदेस। कवि छल्ह प अर्थ देहु तुम्ह पंडित, तिसु भुगवइ भूपति सिंधनरेसु।।1।। पुचिणि, उत्तरणी पचाधणि, दक्षण नारि सु खरी विचक्षण। धारई इक दिसि ईस धियावहि, अरडकमल्ल सेज सुषिरवइ।। दक्षण नारि कहइ हसि गोरी, प्रेम पियामी कामि कि होरी।। अमी वयणि मुखि अमृत चावर, अरडकमल्ल सेज सुषिरावइ।। अनइ सांभलिज्यउ बाई ए काइं एक माहरा मुख ना वचन। ताहरइ ढिल मंडलि नइ देसि कुंवर एक। रुपवंत मांटी डोलां चा निरिखाला। ते कहउ दुतिया नउ चंद्रमा। सभा नउ मंडल। दस च्यारि चउद विद्या नउ भोज। जाण प्रवीण। नवल नागरीक । षट भाषा नउ दीकरउ तेहनत काजिई। कांइ एक सिंगार कीनई। प्रथमि ही गंगानइ उदकि मज्जन सिंगार कीजइ। बीजइ अगर चंन्दन कस्थूरी नउ लेप सरीर मांडिजइ नवादि नउ तिलक ललाटि ठविंजइ राहु ना पान चूनउ कस्तुरी नी खइर बडी केवड़ा नउ काथ। तेहना मुखवास तंबोल कीधा। अवर निम्मल मुक्ताफल ना हार। दक्षण ना चीर आंडबर करी नइ सखीनइ संघातिइं। रहसिंइं पगु धरिजई।।1।। छंद -- पगु धरइ सुसेज कुंवर वर कामिणि नव सत साजि सिंगार तंन कवलादल नयण कीर सर गंधड कर कंकण उरि हार वनं श्रीफल वि वि सिहण लीण रसि छपय हंसगमिणि मुखि अमी चवइ अरडकमल्ल सुंदर सविचक्षण सरस सधण गुजरी रमइ।।1।। पूरविणी कहिसी सुणि साधण, हे गुजरि, गरबु न कारिसी इमसिम सुंदरि। नयण बाण सर पंचम लावू, अरडकमल सेज सुषि रावू।।1।। www.jainelibrary.org Jain Education International Only

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