Book Title: Sramana 1992 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 74
________________ 72 श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १८ पत्र संख्या, ग्रन्थान, रचना संवत्, लेखन संवत्, भाषा व ग्रन्थ स्थिति आदि का चित्रण है। इसवे पश्चात् इसी खण्ड में इन कृतियों का अकारादि क्रम से विवरण प्रस्तुत किया गया है। ग्रन्थ वे अन्त में संघवीपाडे के ताड़पत्रीय ग्रन्थों की भी सूची प्रकाशित है। इस प्रकार तीन जिल्दों एवं चार भागों में प्रकाशित यह सम्पूर्ण सूची पाटन के ग्रन्थ भण्डार में उपलब्ध ग्रन्थों का एक प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत करती है। ज्ञातव्य है कि प्राचीनतम हस्तप्रतों की दृष्टि से यह भण्डार अद्वितीय है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में संस्था मे डायरेक्टर जितेन्द्र बी. शाह ने जो श्रम किया है। वह स्तुत्य है। आशा है भविष्य में भी वे शोध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण ऐसी कृतियों के प्रकाश में रुचि लेगें। मुद्रण निर्दोष व सुन्दर है। शोधसंस्थानों व ग्रन्थालयों के लिए पुस्तक अपरिहार्य है। अन्त में पुनः प्रकाशक संस्था एवं उसके निदेशक को धन्यवाद देते हैं, जिन्होने इस अमूल्ब निधि को हमें उपलब्ध कराया है। जैन आगम साहित्य, संपा. डॉ. के. आर. चन्द्र, प्रका, प्राकृत जैन विद्याविकास फंड, अहमदाबाद-380015, वितरक- पार्श्व प्रकाशन. निशापोल नाका, जवेरीवाड, रिलीफ रोड, अहमदाबाद, ई.सं. 1992 डिमाई- 16 पेजी, मूल्य- 100/ प्रस्तुत कृति में गुजरात विश्वविद्यालय अक्टूबर, 1986 में संपन्न जैन आगम साहित्य संगोष्ठी में पठित निबन्धों में से चुने हुए निबन्धों का प्रकाशन किया गया है। सभी निबन्ध मुख्यतया आगम साहित्य से ही संबंधित हैं। कुल 30 निबन्ध प्रकाशित किये गए हैं। प्रथम निबन्ध में आचार्य श्री तुलसी के आचारांग के ध्यान साधना के सूत्रों को प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय निबन्ध प्रो. एम. ए. ढाकी का है जो सूत्रकृतांग के पुण्डरीक अध्ययन की प्राचीनता पर प्रकाश डालता है। तृतीय लेख में स्थानांग में 5 ज्ञानों की जो चर्चा है उसका विवरण मिलता है। इसके लेखक श्री जितेन्द्र बी.शाह हैं। चतुर्थ में युवाचार्य महाप्रज्ञ ने आगमों में वर्णित अतीन्द्रिय ज्ञान के चक्रों तथा ग्रन्थि-तंत्र का उल्लेख किया है। कृति के अन्य लेखों में डा. सागर मल जैन का प्रश्नव्याकरण की प्राचीन विषय वस्तु की खोज शोध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसी प्रकार यशोधरा बाधवानी का अंग्रेजी लेख जो जैन आगमों व प्रमुख उपनिषदों में वर्णित मोक्ष मार्ग का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। प्राकृत भाषा की दृष्टि से प्रो. भायानी का तं श्रुति वाला लेख भी महत्वपूर्ण कहा जा सकता है। अन्य लेखों में कुछ आगम साहित्य के विभिन्न ग्रन्थों की विषय-वस्तु का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हैं तो कुछ जैन आगमों की विषय-वस्तु की उपनिषद्, मनुस्मृति, धम्मपद, महाभारत आदि से तुलना करते हैं। संक्षेप में सभी लेख महत्त्वपूर्ण हैं। ग्रन्थ का मुद्रण सामान्य है, किन्तु उसमें प्रतिपादित विषयवस्तु For Private & Wêrsonal Use Only

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