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'इतिहास की अमर बेल ओसवाल, खण्ड २, लेखक श्री मांगीलाल भूतोडिया, प्रकाशक प्रियदर्शी प्रकाशन, 7 ओल्ड पोस्ट आफिस स्ट्रीट, कलकत्ता- 1, आकार डिमाई 16 पेजी, पृ.सं. 460, प्रथम खण्ड, मूल्य 100/-, द्वितीय खण्ड - 175/
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श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १८८२
प्रस्तुत कृति ओसवाल जाति के इतिहास का द्वितीय खण्ड है। इसके पूर्व श्री मांगीलाल जी भूतोड़िया ने इसके प्रथम खण्ड के बारह अध्यायों में ओसवाल जाति के उद्भव आदि के सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी दी है, जिसकी समीक्षा पूर्व में हमने प्रकाशित की थी। इसके द्वितीय खण्ड में 13 से 23 तक कुल 11 अध्याय हैं । तेरहवें अध्याय में ओसवालों के प्रवसन सम्बन्धी विवरण हैं । कृति का 14वाँ अध्याय ओसवाल जाति के गोत्रों के उद्भव पर प्रकाश डालता है। यह अध्याय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें क्षत्रिय, चौहान, परमार, राठौर, प्रतिहार, सिसोदिया, कछवा, सोलंकी, गौठ, सोडा राजपूतों से तथा ब्राह्मण, श्रीमाल, माहेश्वरी, खण्डेलवाल आदि जातियों से ओसवालों के कौन-कौन से गोत्र संबन्धित हैं, इसका एक प्रामाणिक विवरण दिया गया है । इसके अतिरिक्त इसमें गुजरात के ओसवालों का भी विवरण है। 15 वें अध्याय में ओसवाल संस्कृति का विवरण है। सोलहवां अध्याय ओसवालों का शासन संचालन में क्या योगदान रहा इसकी चर्चा करता है । 17वें अध्याय में ओसवालों की सहजातियों यथा अग्रवाल, खण्डेलवाल आदि की चर्चा है। कृति का 18वाँ अध्याय ओसवाल जाति के विभिन्न भेद-प्रभेदों की चर्चा करता है। इसके अतिरिक्त इसमें ओसवालों के द्वारा वैष्णव धर्म व दिगंबर परम्परा को अपनाये जाने का भी उल्लेख है। 19 वें अध्याय में ओसवाल समाज की सामाजिक समस्याओं की चर्चा है। 20वाँ अध्याय जनगणना की दृष्टि से ओसवालों की चर्चा करता है। अध्याय क्रमांक 21 एवं 22 में क्रमशः ओसवाल जाति के नारी रत्नों व नर पुंगवों की चर्चा है।
इस प्रकार श्री मांगीलाल जी भूतोड़िया ने पर्याप्त परिश्रम करके ओसवाल जाति के इतिहास को तैयार करने का प्रयास किया है। यद्यपि इतिहास लेखन एक ऐसा कार्य है जिसकी पूर्णता का दावा नहीं किया जा सकता। क्योंकि एक तो ग्रंथ लेखन में पृष्ठों की सीमाएं होती हैं। दूसरे लेखक को उपलब्ध सामग्री भी लेखन को सीमित बनाती हैं। अतः हम यह तो नहीं कह सकते कि यह कृति ओसवाल जाति का पूर्ण इतिहास प्रस्तुत करती है, फिर भी अभी तक ओसवाल जाति के इतिहास लेखन के जो भी प्रयास हुए हैं उनमें यह एक सर्वोत्तम प्रयास है। भविष्य में इस दिशा में जो और भी प्रयास होंगे और उनके लिए यह कृति आधार भूमि बनेगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है। कृति संग्रहणीय है। इस हेतु लेखक निश्चय ही बधाई के पात्र हैं।
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