Book Title: Sramana 1992 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
View full book text
________________
56
श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९८२
आता सुन स सखीए पूरव देसकर महिले बोलती आहि । कस बोलती आहि। तुम्हारा पक्षिमा कर देसि ढीली कर नगर कुंवर सठ नीक चीन्हा। कस सुठ नीक चीन्हा, जस गंगा कर नीर। साहस कर धीर। बुधि करि निधान । सहस गोपी कर कान्हा। रजनीकर भान। कुसम महेस्वर। मानिनि मन रंजन विरहणी प्राणवल्लभा आतां सुणि सुखिये। अवर उत्तिम सुठि नीक लख्यण कस मुठ नीक लक्षण जकरी पउरिक दरिसण छ याणवइ पाखंड। नट नाटक। पेरणी पात्र। गुण गाहा उर बूझ वणहार सकर करा प्रवीण सहजपार संघई कर नाती तेजपार संई करपूत । तकरे कारण सिंगार कीन्हा।। कसा सिंगार कीनां । छंद -
सुठि करइ सिंगार नयना भरि कजरा, कूकू चंदनि खौर करि। सिरि दक्षण चीर, करिहिं कसि कंचू, करी पटोरा वान वनं।। मुख सुरंग तंबोरा, मग्ग भरि सिंदुरा, धिम्म पियासि लाग मनी।। अरडकमल्ल सुंदर रसि रावइ। रंगि रावइ हसि पूरविणी।।2।। पाचाणि धण जुव्वणि वाली। नयणि सलूणी काम कराली।। बहुविधि फुल्लह सेज विछावां।
अरडकमल्ल सेज सुषिरावा।। विणी सुणंदी हई। असाणइ मुलताना हंदा गांवा हवइ हिक माणूह सरोवरि आहा तिया पंज सत कुडीए धांवणइ जाँदी हई जा दिसइ ती हिक्क मोटियार। खांडे हंदी मुठि। घोड़े हंदी पुठि पान चावइंदा आइ निक्कथा। सांनि के नेहड़ा गभरु जेहडा राउ भरहू। जेहरा राउ टुलची जेहरा राउ कमलदी मई जाणिउं तांबी कुडी आषंदी हइ। सूणंदी भइणी एइसे न होइ। चत्वे दी सुं जिणहदा विरद नीसाण भराइर वहु चक्कि फ्ल्ला तिन्हादई वंसि सहजपाल संघई दा पोत्रा तेजपाल संघइ पुत्त। दीवाण हंदा दीपकु कर्ण जेहा दातार। भोज जेहा वडवार। वाचाद। अपिचाल। सहस गोपीदा वल्लभ। जां देखइ लख समप्पइ जां बोलई ता दालिद कप्पइ। जां हसियइ मई मनि मनि भाया। ललौ ही तां वरु पाया।।
बरु पाया सखि ये लली पुजई
दीवड़ चित्ता दातार कले। सुलितान सनाखत तिणि कुलि उदयउ
दालिद भंजण करण छले।। For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82