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अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर पूर्णिमागच्छ के कुछ अन्य मुनिजनों के भी पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित होते हैं, परन्तु उनके आधार पर इस गच्छ की गुरु-परम्परा की किसी तालिका को समायोजित कर पाना कठिन है। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है :
भ्रमण, जुलाई-सितम्बर, १८६६
1. जयप्रभसूरि [ वि. सं. 14651
2. जयप्रभसूरि के पट्टधर जयभद्रसूरि [ वि. सं. 1489-15191 3. विद्याशेखरसूरि के पट्टधर गुणसुन्दरसूरि [वि. सं. 1504-15241 4. जिनभद्रसूरि [ वि. सं. 1473-14811
5. जिनभद्रसूरि के पट्टधर धर्मशेखरसूरि [ वि. सं. 1503-15201
6. धर्मशेखरसूरि के पट्टधर विशालराजसूरि [ वि. सं. 1525-15301 7. वीरप्रभसूरि [ वि. सं. 1464-15061
8. वीरप्रभसूरि के पट्टधर कमलप्रभसूरि [ वि. सं. 1510-15331
अभिलेखीय साक्ष्यों से पूर्णिमागच्छ के अन्य बहुत से मुनिजनों के नाम भी ज्ञात होते हैं, परन्तु वहां उनकी गुरु-परम्परा का नामोल्लेख न होने से उनके परस्पर सम्बन्धों का पता नहीं चल पाता । साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर संकलित गुरु-शिष्य परम्परा [तालिका संख्या 11 के साथ भी इन मुनिजनों का पूर्वापर सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता, फिर भी इनसे इतना तो स्पष्ट रूप से सुनिश्चित हो जाता है कि इस गच्छ के मुनिजनों का श्वेताम्बर जैन समाज के एक बड़े वर्ग पर लगभग 400 वर्षो के लम्बे समय तक व्यापक प्रभाव रहा।
अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित गुरु-शिष्य परम्परा की तालिका संख्या 3 का साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर संकलित गुरु-शिष्य परम्परा की तालिका संख्या 1 के साथ परस्पर समायोजन संभव नहीं हो सका, किन्तु तालिका संख्या 1 और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर संकलित तालिका संख्या 2 के परस्पर समायोजन से पूर्णिमागच्छीय मुनिजनों की जो विस्तृत तालिका बनती है, वह इस प्रकार है :द्रष्टव्य - तालिका संख्या - 4
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