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शिव प्रसाद
चन्द्रप्रभसूर
1
धर्मघोषसूरि
1
यशोघोषसूरि
1
प्रसूरि वि. सं. 1223 / ई. सन् 1167 में प्रश्नोत्तररत्नमालावृत्ति के रचनाकार ]
अममस्वामिचरितमहाकाव्य
पूर्णिमागच्छीय समुद्रघोषसूरि के विद्वान् शिष्य मुनिरत्नसूरि द्वारा यह प्रसिद्ध कृति वि. सं. 1252 / ई. सन् 1196 में रची गयी है। रचना के अन्त में प्रशस्ति के अर्न्तगत ग्रन्थकार ने अपनी गुरु- परम्परा दी है, जो इस प्रकार है :
चन्द्रप्रभसूर [ पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक ]
धर्मघोषसूरि
I
समुद्रघोषसूरि
मुनिरत्नसूर [ वि.सं. 1152 / ई. सन् 1196
I
चक्रेश्वरसूरि
अस्वामिचरितमहाकाव्य के रचनाकार ]
प्रत्येकबुद्धचरित
पूर्णिमागच्छीय शिवप्रभसूरि के शिष्य श्रीतिलकसूरि अपरनाम तिलकाचार्य ने वि. सं. 1261 / ई. सन् 1205 में इस ग्रन्थ की रचना की । श्रीतिलकसूरि द्वारा रचित कई कृतियां मिलती हैं। श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इनकी गुरु- परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है :
चन्द्रप्रभसूर [ पूर्णिमागच्छ के प्रकटकर्ता ]
I
धर्मघोषसूरि
शिवप्रभसूरि
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