Book Title: Sramana 1992 07
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 41
________________ शिव प्रसाद 39 205 वि.सं. 1492 वैशाख सुदि 3 गुरुवार प्रा.ले.सं. लेखांक 158 वि.सं. 1501 वैशाख सुदि 13 गुरुवार जै.धा.प्र.ले.सं.भाग 1 लेखांक 225 वि.सं. 1501 ज्येष्ठ वदि 9 रविवार जै.ले.सं. भाग 1 लेखांक 1565 वि.सं. 1504. ज्येष्ठ वदि 9 रविवार प्रा.ले.सं. लेखांक वि.सं. 1505 वैशाख सुदि 5 रविवार जै.धा.प्र.ले.सं.भाग 2 लेखांक 812 वि.सं. 1505 माघ सुदि 5 रविवार जै.प्र.ले.सं. लेखांक 360 वि.सं. 1506 वैशाख सुदि 6 शुक्रवार बी.जै.ले.सं. लेखांक 2478 वि. सं. 1506 माघ सुदि 7 बुधवार जै.धा.प्र.ले.सं.भाग 1 लेखांक 1079 वि.सं. 1507 ज्येष्ठ सुदि 6 गुरुवार वही, भाग 1 लेखांक 425 वि.सं. 1507 माघ सुदि 11 बुधवार वही, भाग 2 लेखांक 441 वि.सं. 1508 वैशाख सुदि 3 शनिवार वही, भाग 3 लेखांक 957 वि.सं. 1508 ज्येष्ठ सुदि 13 बुधवार जै.ले.सं. भाग 3, लेखांक 2326 वि.सं. 1508 ज्येष्ठ सुदि 13 बुधवार जै.धा.प्र.ले.सं.भाग 1, लेखांक 1017 वि.सं. 1509 ज्येष्ठ सुदि 10 गुरुवार वही, भाग 2 लेखांक 1034 वि.सं. 1510 फाल्गुन सुदि 11 शनिवार वही, भाग 2 लेखांक 964 वि.सं. 1511 ज्येष्ठ वदि 10 सोमवार वही, भाग 2 लेखांक 138 वि.सं. 1511 ज्येष्ठ वदि 10 सोमवार वही, भाग 2 लेखांक 462 वि.सं. 1511 आषाढ़ सुदि 5 शुक्रवार वही, भाग 2, लेखांक 377 वि.सं. 1511 माघ वदि 3 बुधवार प्रा.ले.सं., लेखांक 267 वि.सं. 1511 माघ सुदि 5 गुरुवार रा.प्र.ले.सं., लेखांक 171 वि.सं. 1512 ज्येष्ठ वदि 9 गुरुवार जै.ले.सं. भाग 3 लेखांक 2136 गुणसमुद्रसूरि के पट्टधर पुण्यरत्नसूरि आप द्वारा प्रतिष्ठापित 30 सलेख जिन प्रतिमायें मिली हैं, जो वि.सं. 1512 से वि.सं. 1536 तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है :वि.सं. 1512 चैत्र वदि 8 शुक्रवार अ.प्र.जै.ले.सं., लेखांक 582 वि.सं. 1512 ज्येष्ठ सुदि 8 रविवार जै.धा.प्र.ले.सं.भाग 1, लेखांक 106 वि.सं. 1515 फाल्गुन सुदि 9 रविवार रा.प्र.ले.सं., लेखांक 192 वि.सं. 1517 वैशाख वदि 8 शुक्रवार जै.ले.सं. भाग 2, लेखांक 2085 वि.सं. 1517 माघ वदि 8 बुधवार श्री.प्र.ले.सं. लेखांक 71 वि.सं. 1518 फाल्गुन वदि 1 सोमवार जै.धा.प्र.ले.सं.भाग 2, लेखांक 170 वि.सं. 1519 वैशाख वदि 11 शुक्रवार जै.ले.सं. भाग 2, लेखांक 1567 वि.सं. 1519 वैशाख वदि 11 शुक्रवार जै.धा.प्र.ले.सं.भाग 2 लेखांक 822 12, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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