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श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १eed
पद्मप्रभसूरि
देवानन्दसूरि वि.सं. 1455/ई. सन् 1399 में
क्षेत्रसमासवृत्ति के रचनाकार श्रीपालचरित __ पूर्णिमागच्छीय गुणसमुद्रसूरि के शिष्य सत्यराजगणि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित 500 श्लोकों की यह कृति वि.सं. 1514 में रची गयी है। इसकी वि.सं. 1575/ई. सन् 1519 की एक प्रतिलिपि जैसलमेर के ग्रन्थभंडार में संरक्षित है। रचना के अन्त में प्रशस्ति के अन्र्तगत रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा का विस्तृत परिचय न देते हुए मात्र अपने गुरु का ही नामोल्लेख किया है :
गुणसमुद्रसूरि
सत्यराजगोणे । वि.सं. 1514/ई. सन् 1458 में श्रीपालचरित के रचनाकार] पूर्णिमागच्छगुर्वावली
यह गुर्वावली पूर्णिमागच्छ के सुमतिरत्नसूरि के शिष्य उदयसमुद्रसूरि द्वारा वि.सं. 1580/ई. सन् 1524 में रची गयी है10 | इसमें उल्लिखित पूर्णिमागच्छ के आचार्यों का क्रम निम्नानुसार है :
चन्द्रगच्छीय चन्द्रप्रभसूरि [ पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक]
धर्मघोषसूरि
देवभद्रसूरि
जिनदत्तसूरि
शांतिभद्रसूरि
भुवनतिलकसरि
रत्नप्रभसूरि
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