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सम्पादकीय
महोपाध्याय कविवर समयसुन्दर सतरहवीं शती के महान् विद्वान और सुकवि थे। प्राकृत, संस्कृत, राजस्थानी, गुजरातो
और हिन्दी मे निर्मित आपका साहित्य बहुत विशाल है। इधर कुछ वर्षों में उसके अनुसन्धान व प्रकाशन का प्रयत्न भी अच्छे रूप मे हुआ है । मौलिक ग्रन्थों के साथ साथ इन्होने बहुत से महत्वपूर्ण एवं विविध विषयक ग्रन्थो पर टीकाएं भी रची है। राजस्थानी भाषा मे रचित इनकी रास चौपाई, स्तवन, सज्झायादि अनेकों पद्यबद्ध रचनाएँ तो है ही पर साथ ही षडावश्यक वालावबोध जैसी गद्य रचनाएँ भी प्राप्त हैं। आपकी पद्य रचनाओं मे सीताराम चौपाई सबसे बड़ो रचना है इसका परिमाण ३७०० श्लोक परिमित है। जैन परम्परा को रामकथा को इस काव्य में गुपित किया है। कई वर्षों से इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ के प्रकाशन का प्रयत्न चल रहा था और अनूप संस्कृत पुस्तकालय की सादूल ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित करने के लिए लगभग १५ वर्ष पूर्व इसकी प्रेसकापी भी वहीं की एक प्रति से करवा ली गई थी पर उक्त ग्रन्थमाला का प्रकाशन स्थगित हो जाने से वह प्रेसकापी योंही पड़ी रही, जिसे अब सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्य ट द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है।
प्रस्तुत जैन रामायण (काव्य) का अनेक दृष्टियों से महत्व है। इसका मूलाधार प्राकृत भाषा का सीता चरित्र है जो अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाया है। जैन राम कथा का सबसे