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श्रेष्ठिवर्य शाह ओटरमलजी भूताजी राठौड़, तखतगढ़ निवासी
का
संक्षिप्त परिचय
इस पुस्तक के द्रव्यसहायक संघवी श्री प्रोटरमलजी भूताजी राठौड़ ( वलदरा वाले ) तखतगढ़ निवासी एवं उनका परिवार सात मंगलमय क्षेत्रों में अपनी लक्ष्मी का सदुपयोग करने में सदा आगे रहते हैं । जैनधर्म में श्रावक को इन सात क्षेत्रों में लक्ष्मी का सदुपयोग करने का निर्देश है - १. जिन प्रतिमा, २. जिन मंदिर, ३. जिनागम, ४. साधु, ५. साध्वी ६. श्रावक, ७. श्राविका । श्रेष्ठिवर्य ओटरमलजी ने इस पुस्तक के प्रकाशन में जो द्रव्य सहायता दी है - इससे उन्होंने अपने विद्याप्रेम एवं गुरुभक्ति का परिचय दिया है । इनका जन्म वि.सं. १९७३, मगसर वद को धार्मिक संस्कारवाले जैन प्राग्वट परिवार में हुआ । आपके पिताजी भूताजी एवं माताजी रतीबाई का जीवन धर्मनिष्ठ था । आपके दादाजी हंसाजी उदारमना श्रावक थे । परिवार के उत्तम संस्कारों की छाप आपके जीवन पर पड़ी । कर्मराजा का नाटक कहिये या भाग्य का खेल, पिताजी आपके जन्म के एक महीने पूर्व स्वर्ग सिधारे ।
अग्नि में तपकर सोना उज्ज्वल बनता है, कष्टों में पल कर जीवन हीरे के समान चमकदार बनता है । आपने अल्प वय में कामचलाऊ व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त की तथा धार्मिक अभ्यास भी सामायिक सूत्र तक किया । दस वर्ष की बाल आयु में करने बम्बई गये । आप कुशाग्र बुद्धि वाले थे, धीरे-धीरे हुनर सीख ली और बाद में अपनी स्वतन्त्र मनीलेन्डर्स की
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आप नौकरी व्यापार की दुकान खोली 1