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आप खुद को ही पहचानने का स्वयं प्रयत्न करो ।
मनुष्य स्वयं ही अपना भावी बनाता है । कोई किसी के भावी को बना नहीं सकता । इस जन्म में मुख्यतया पूर्वजन्मों के पुण्यों का और पापों का फल भोगा जाता है ।
ऐसा मानने की भूल मत करना कि- 'आप जो कुछ भी प्रवृत्ति करते हैं, उसका जो तत्काल प्रत्यक्ष परिणाम आता हैं, उसके सिवाय का उसका परिणाम हैं ही नहीं ।'
'प्राप्त करना वहीं और पुण्य किये बिना रहना नहीं' - इतना भी निर्णय नहीं करते हुए, मनुष्य बहुतया गतानुगतिक रीति से ही जोते हैं।
-लेखक
परम शासनप्रभावक, व्याख्यान वाचस्पति आचार्गदेव' श्रीमद विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा