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आत्मा शरीर में सर्वत्र व्याप्त है, परन्तु वह शरीर से भिन्न है ।
महापुरुषों ने इस आयंदेश की जो प्रधानता गाई है, वह इस आर्यदेश की अध्यात्मप्रधानता को लेकर ही है।
'महापुरुषों ने आर्यदेश की महत्ता ममत्व के अधीन बनकर गाई है'- ऐसा कहकर अपने को अपनी तुच्छता का ।.. . आरोपण, कभी भी, महापुरुषों पर नहीं करना चाहिये ।'
आत्मा के हित के उद्देश्य से जो विचार किया जाय, बात की जाय अथवा तो वर्तन किया जाय
इन सब का समावेश 'अध्यात्म में होता है।
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- -लेखकपू. परम शासन-प्रभावक, व्याख्यान-वाचस्पति आचार्यदेव श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा