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दुनिया की कलाओं के लिये भी दुनिया ने बाल्यकाल ही पसन्द किया है संगीत भी सामान्यतया बाल्यकाल मे सिखाया जाता है, सिनेमा नाटक के एक्टर बनने की ट्रेनिंग भी बाल्यकाल से लेते है, नृत्यकला आदि और दूसरी भी पेट भरने की विद्या के लिये भी बाल्यकाल योग्य माना जाता है, तो फिर इस आत्मा की मुक्ति कराने वाली दीक्षा बाल्यकाल में होवे, उसके सामने विरोध करना यह भयंकर पाप और ऐसे प्रस्ताव रखने वाले पापी के रूप में पहचाने जाय इसमें आश्चर्य क्या है ? भयंकर पाप कर्म आचरने को तैयार हुए पापआत्माओं की बुद्धि ही भ्रष्ट हो गई है और इसी कारण उनको यह भान नहीं है कि धर्म के साम्राज्य में, धर्म में दखल करने वाले कायदे नहीं ही होते है। . सोचो कि बहुत जोरों की बाढ. आ रही है वहां बचने के लिये स्टीमर में बैठने के लिये माता-पिता को पूछकर आने का और दूसरों के समक्ष जाहिर करने का कायदा बना सकते हैं ? पोलिस को सरकार ने यद्यरि मर्यादित सत्ता दी है, फिर भी उसके स्वयं पर आवे तव सरकार उसको कितनी छूट दे रखी है. ? यदि छूट न हो तो मरने जावे कौन प्रायः कोई नहीं । विश्वासपात्र और जवाबदार मुनिम यद्यपि शेठ का पूछे बिना व्यापार का कार्य नहीं करता, परन्तु शेठ ने एक माल ले। भेजा, मुनीम बाजार में गया और उस माल से दूसरे माल के सौदे । लाभ ज्यादा दिखता है और मौका ऐसा है कि उस भाव से उसी सम माल मिले वैसा है, तब मुनिम शेठ को पूछने जाय तो उसको शेठ बेवकू
ही कहे न ?
प०पू० कलिकाल-कल्पतरु आचाय देव श्री विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महारा