Book Title: Shwetambar Mat Samiksha
Author(s): Ajitkumar Shastri
Publisher: Bansidhar Pandit

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Page 6
________________ कारण मानवशरीर पाकर धर्मसाधन सरीखा आवश्यक कार्य अवश्य करना चाहिये । किंतु, जहां पर जिस वस्तुकी विक्री बहुत होती है वहां पर असली मालके साथ नकली झूठे भी सस्ते भावमें बिकनेके लिये आजाते हैं। सस्तेपनका प्रलोभन लोगोंको अन्धा बना देता है | इस कारण असली मालको छोडकर झूठे मालको भी लोग खरीदने लग जाते हैं । धर्मके विषय में भी ठीक ऐसी ही बात है । धर्मकी खपत (विक्री) भी मानव शरीर धारियोंमें ही बहुतसी होती है इस कारण धर्मके नामपर नकली माल भी यहां विकता रहता है । इस दशा में बुद्धिमान् पुरुषका मुख्य कार्य यह होता है कि वह प्रलोभन जालमें न फसे. खरे खोटेकी परीक्षा करे. सदा प्रकाशमान उज्वल जवाहिरातका ग्राहक बने, वह चाहे उसको कुछ महंगा ही क्यों न दीखे । हां ! यदि शक्ति न हो तो थोडा ही खरीद करे किंतु खरीद सच्चे मालकी ही करे जिससे कभी छोडने, पछताने, धोखा खानेकी आवश्यकता न हो । परख करनेपर जब धर्मो में जैनधर्म सच्चा जवाहिर ठहरता है। 1 कठिन तो बुद्धिमानका काम है कि इसी धर्मका अनुयायी बने आचरण प्रतीत हो तो थोडा शक्ति अनुसार पालन करे । विकरालकाल प्रवाहसे इस उज्वल जैनधर्मके भीतर भी विभाग होगये हैं जो कि प्रारंभ में तो केवल साधुओंके नग्न रहने तथा वस्त्र पहननेके ही पक्षपर खडे हुए थे किन्तु आगे आगे होनेवाले कुछ महाशयों की ऐसी कृपा हुई कि उन्होंने जैनग्रंथोंको निन्दापात्र बनाने के लिये अनेक जैन ग्रंथों में उन खराब बातोंको मिला दिया जो कि न केवल जैनधर्मकी दृष्टिसे ही किंतु इतर धर्मोकी दृष्टिसे भी अनुचित ठहरती हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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