Book Title: Shrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi Author(s): Shrimad Rajchandra, Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal View full book textPage 6
________________ गया है । पाठकोंसे प्रार्थना है कि प्रन्थको शुद्ध करनेके पश्चात् ग्रंथका अध्ययन करें । आदिमें विषयसूची और राजचन्द्रजीका संक्षिप्त परिचय है। ये भी बिलकुल स्वतंत्र और मौलिक हैं । इस महाभारत - कार्यमें अनेक महानुभावोंने मेरी अनेक प्रकारसे सहायता की है। सर्वप्रथम मैं परमश्रुतप्रभावकमण्डलके व्यवस्थापक श्रीयुत सेठ मणीलाल, रेवाशंकर जगजीवन जौहरीका बहुत कृतज्ञ 'हूँ। ग्रंथके आरंभ से लेकर इसकी समाप्तितक उन्होंने मेरे प्रति पूर्ण सहानुभूतिका भाव रक्खा है । विशेष करके राजचन्द्रजीका संक्षिप्त परिचय आपकी प्रेरणासे ही लिखा गया है। श्रीयुत दामजी केशवजी बम्बई, राजचन्द्रजीके खास मुमुक्षुओंमेंसे हैं। आपकी कृपासे ही मुझे राजचन्द्रजीके मूल पत्रों आदि की नकलें और तत्संबंधी और बहुतसा साहित्य देखनेको मिला है। सचमुच आपके इस सहयोग के बिना मेरा यह कार्य बहुत अधिक कठिन हो जाता । श्रीयुत सुरेन्द्रनाथ साहित्यरत्न बम्बई और श्रीयुत पंडित गुणभद्रजी अगासने मुझे कुछ प्रूफोंके देखने आदिमें मेरी सहायता की है। बम्बईके श्रीयुत डाक्टर भगवानदास मनसुखलाल मेहता, श्रीयुत मोहनलाल दलीचन्द देसाई वकील, और मणिलाल केशवलाल परखि सुप्रिंटेंडेण्ट हीराचन्द गुमानजी जैन बोर्डिङ्ग बम्बईने अपना बहुत कुछ समय इस विषयकी चर्चा में दिया है । मेरे मित्र श्रीयुत दलसुखभाई मालवणीयाने इस ग्रंथका 'संशोधन परिवर्तन' तैय्यार किया है। परमश्रुतप्रभावक मण्डल के मैनेजर श्रीयुत कुन्दनलालजीने मुझे अनेक प्रकार से सहयोग दिया है। मेरी जीवनसंगिनी सौभाग्यवती श्रीमती कमलश्रीने अनेक प्रसंगोंपर कर्मणा और मनसा अनेक तरहसे अपना सहकार देकर इस काममें बहुत अधिक हाथ बँटाया है। वडवा, खंभात, अगास और सिद्धपुरके आश्रमवासी और मुमुक्षुजनोंने अवसर आनेपर मेरे प्रति अपना सौहार्द अभिव्यक्त किया है । मुनि मोहनलाल सेंट्रल जैन लायब्रेरीके कर्मचारियोंने तथा न्यू भारत प्रिंटिंग प्रेसके अध्यक्षों और कम्पोजीट - रौने समय समयपर मेरी मदद की है। इन सब महानुभावोंका मैं हृदयसे आभार मानता हूँ । अन्तमें, धर्म और व्यवहारका सुन्दर बोध प्रदान कर मेरे जीवनमें नई स्फूर्तिका संचार करनेवाले श्रीमद् राजचन्द्रका परम उपकार मानता हुआ मैं इस कार्यको समाप्त करता हूँ । आशा है विद्वान् पाठक मेरी कठिनाइयों का अनुभव करते हुए मेरे इस प्रयत्नका आदर करेंगे । बाग तारदेव १-१-३८ ka Kaav जगदीशचन्द्रPage Navigation
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