Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 13
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 282
________________ आसन् प्रतिद्वारमिहावलम्बि ध्वजानि चञ्चन्मणितोरणानि / पञ्चालिका मङ्गलकानि चाष्टौ, सत्पूर्णकुम्भा वरधूपघट्यः 23 माणिक्यवप्रे प्रतिहाररूप: सौधर्मनाथो वनजाधिपश्च / / द्वारेऽवतस्थे भुवनाधिपोऽथ ज्योति:पतिस्ते तु विचित्रवर्णाः // 24 // सौवर्णवप्रे विजया जया च, जिताभिधानाऽप्यपराजिता च। द्वारस्थिताः शस्त्रकरास्तथैताः दौवारिकत्वं विदधुर्जिनस्य // 25 // वप्रे बहिस्तुम्बरनामदेवः खट्वाङ्गनामा पुरुषोऽस्ति माली / एते प्रतिद्वारमुदात्तदण्डाः क्रमाज्जटमण्डितमौलयोऽस्थुः // 26 // मणिमयच्छन्दक एव आसीदीशानकोणे जिनविश्रमाय / माणिक्यवप्रस्य बहिः सुरौधैर्विनिर्मितः किं नु निजैर्महोभिः // 27 // सद्देशनासद्मनिवृत्तरूपे, बहिस्थवप्रस्य किल प्रदेशे / द्वे द्वे भवेतां वरपुष्करिण्यौ, कोणेषु चैका चतुरस्रके स्यात् // 28 // गायन्ति नृत्यन्ति च देवसङ्घा जिनेन्द्रसंदर्शनतोऽतिहष्टाः / प्रमोदमन्तःस्थमनासवन्तो, धर्तुं विमुञ्चन्ति च सिंहनादान् // 29 // इन्द्रादिक: कोपि महर्द्धिकोऽथ समेति देवो यदि भक्तियुक्तः / सर्वं तदैकः कुरुते स यद्वा भक्तेः प्रभुत्वस्य च किं न साध्यम् 30 अजातपूर्वः किल यत्र यत्र, महर्धिकः कोपि समेति देवः / इदं पुनस्तत्र भवेदवश्यं, सुप्रातिहार्याणि निरन्तरं स्युः // 31 // जगच्चमत्कारकरैश्चतुस्त्रिंशताभिरामातिशयैः,समग्रैः / निर्वाणमार्ग प्रथयन् जनानां चिरं जगत्यां जयतात् जिनेन्द्रः // 32 // स सर्वभाषानुगया जिनेन्द्रः सद्भाषया योजनविस्तरिण्या। संप्रीणयामास समग्रलोकं कोकं यथाऽहर्पतिरस्तशोकम् // 33 // इत्थं श्रीजिनराजवीर ! भवतः सम्यग् विधाय स्तवं, यत्पुण्यं समुपार्जितं किल मया भावस्य नैर्मल्यतः / . 273

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