Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 13
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 345
________________ // 3 // ॥सिद्धप्राभृतः // तिहुयणपणए तिहुयण-गुणाहिए तिहुयणातिसयणाणे[णी] / .. उसभातिवीरचरिमे, तमरयरहिए पणमिऊणं .. // 1 // सुणिउणआगमणिहसे, सुणिउणपरमत्थसुत्तगंथधरे / . . चोद्दसपुव्विगमाई, कमेण सव्वे पणमिऊणं णिक्खेवणिरुत्तीहि य, छहिं अट्ठहिँ चाणुओगदारेहिं / खेत्तातिमग्गणेसु य, सिद्धाणं वण्णिया भेया / णामं ठवणा दविए, भावम्मि चउब्विहो हवइ सिद्धो / णोआगमओ दुविहो, भावे खयउवसमखए य // 4 ओदइयाई भावे, अत्थेणं सव्वहा खवित्ताणं, / साहियवं जं खतियं, भावं तो भावसिद्धो उ सिद्धाणि सव्वकज्जाणि जेण ण य से असाहियं किंचि / विज्ञासुहइच्छाती, तम्हा सिद्धो त्ति से सद्दो // 6 // दीहकालरयं जं तु, कम्मं सेसियमट्ठहा। . सियं धंत त्ति सिद्धस्स, सिद्धत्तमुवजायइ किं कस्स केण कत्थ व, केवइकालं कई व सिं भेया। जियअत्तपरीणामा, आया साई अणंत दुहा // 8 // ते तु अणंतरसिद्धा, परंपरा चेव होंति नायव्वा / संतादीहि य अट्ठहि, एक्केक्कपरूवणा भणिया संतपयपरूवणया, दव्वपमाणं च खेत्तफुसणा य।। कालो य अंतरं भाव-अप्पबहु सण्णिगासे य . // 10 // खेत्ते काले गइवे-यतित्थलिंगे चरित्तबुद्धे य। . णाणोगाहुक्कस्से, अंतरमणुसमयगणणमप्पबहू . // 11 // 335

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