Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 13
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 8 // // 0 जम्हा चत्तारि सया अड्ढाइय संगुणा हवइ सहसो / अस्सुवओगो तिविहो जहक्कमेणं इमो होइ उस्सेहंगुलमेगं हवइ पमाणंगुलं सहस्सगुणं / एयस्स खित्तगुणियं पडुच्च परिभासियं एयं // 9 // सुत्तम्मि जत्थ भणिओ उसभसुओ भरहनामगो चक्की / आयंगुलेण वीसा समहिय अंगुलसयपमाणो सो सूइअंगुलेणं चउंसयमाणेण होइ घित्तव्यो / कहमनह पंचसया उस्सेहंगुलधणूणं सो // 11 // वीसाहियस्य चउसयगुणणे जाया सहस्स अडयाला / छनवइभागहारे लभते धणुसया पंच // 12 // जे पुढवाइपमाणा तविक्खंभेण ते मिणिज्जंति / अणुओगदारचुन्नीवित्तीसु य भणियमेयं ति // 13 // जे अ पमाणंगुलाओ पुढवाइप्पमाणा आणिज्जति / ते अपमाणंगुलविक्खंभेण आणेयव्वा ण पुण सूइअंगुलेणं ति // 14 // एयं च खित्त गणिएण केइ एअस्स जं पुण मिणंति / अन्ने उ सूइ अंगुल माणेण न सुत्तभणिअं तं . // 15 // किं च मएसुं दोसु वि मगहंगकलिंगमाइआ सव्वे / पाएणारिअदेसा एगम्मि अ जोयणे हुति // 16 // सहस्समाणे चउरंसजोयणे दीहपिहुलभावेणं / हुंति परुप्परगुणणे लक्खा दस जोअणाण फुडं // 17 // चउसयमाणम्मि पुणो एगो लक्खो सहस्स तह सट्ठी / एवं एगम्मि वि जोअणम्मि कह ते न मायंति // 18 // एयं च पुणमलोगिग जमेगजोयण महीइ ते माया / तह सेसजोयणाणं पावइ विहलत्तणं भरहे // 19 // 316

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