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'मेरे काम, क्रोध आदि मित्रोंकी मृत्यु हो गई है। उन्हींके शोकमें ये काले वस्त्र धारण किये हैं,' अतिथिने जवाब दिया।
गृहस्थने अपने नौकरको हुक्म दिया कि इस अतिथिको घरसे बाहर निकाल दो। नौकरने फ़ौरन् आज्ञाका पालन किया ।
थोडी देर बाद उसने अतिथिको वापस बुलवाया। मगर पास आनेपर फिर निकलवा दिया। इस तरह सत्तर बार अपमान करके उसे निकलवाया। लेकिन अतिथिकी शक्लपर गुस्से या रंजकी कोई अलामत नमूदार नहीं हुई।
अन्तमें गृहस्थने अतिथिकी वन्दना की, और विनयपूर्वक कहा'आप सचमुच क्षमावान् हैं। मैंने आपको गुस्सा दिलानेकी बहुत कोशिशें की, मगर आप बिल्कुल शान्त रहे । आपने सचमुच क्रोधपर पूर्ण विजय प्राप्त कर ली है....।'
__ अतिथि बोला-'बस करो, बस करो । ज़्यादा तारीफ़ न करो । मुझसे ज़्यादा क्षमाशील तो कुत्ते होते हैं जो हज़ारों बार बुलाने और दुत्कारनेपर भी बराबर आते-जाते रहते हैं । कुत्ते भी जिसका पालन कर सकें उसमें प्रशंसाकी कौन-सी बात है ?'
सुलतान बादशाह बननेके बाद किसीने हसनसे पूछा- आपके पास न तो काफ़ी धन था न सेना, फिर आप सुलतान कैसे हो गये ?'
हसनने जवाब दिया-'मित्रोंके प्रति सच्चा प्रेम, शत्रुके प्रति भी उदारता और हर एकके प्रति सद्भाव क्या सुलतान बननेकेलिए काफ़ी नहीं है ?'
सन्त-विनोद