Book Title: Sant Vinod
Author(s): Narayan Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 143
________________ ईश्वर में विश्वास नहीं करते ? तुमने हमारे साथ प्रार्थना क्यों नहीं बोली ?' बूढ़ेने जवाब दिया- 'हम अग्निकी पूजा करते हैं ।' यह सुनकर इब्राहीम भड़क उठा। उसने चिल्लाकर कहा - ' अगर तुम्हें मेरे ईश्वर में विश्वास नहीं है, और मेरी प्रार्थना बोलनेसे इनकार है, तो तुम इसी वक़्त घरसे निकल जाओ ।' इब्राहीमने बिना खाना खिलाये बुड्ढेको घरसे निकाल दिया और दरवाजा बन्द कर दिया । लेकिन ज्यों ही उसने ऐसा किया कि कमरे में प्रकाशकी एक ज्योति फैली और एक फरिश्ता प्रकट हुआ । और इब्राहीमसे बोला- 'यह तुमने क्या किया ? ईश्वर इस ग़रीब बूढ़े आदमीका सौ वर्पसे भरण-पोषण करता रहा है मगर तुम धर्मात्मा बननेपर भी उसे सिर्फ़ इसलिए खाना न खिला सके कि वह अन्य धर्मावलम्बी है | दुनिया में कितने ही धर्म हों लेकिन ईश्वर एक है और वह सबका पिता है ।' यह कहकर फ़रिश्ता ग़ायब हो गया । इब्राहीमको अपनी मूर्खताका ज्ञान हुआ । वह बूढ़े के पीछे भागा और उससे माफ़ी माँगी । क्षमा करते हुए बूढ़ेने कहा – 'शायद तुमने अनुभव कर लिया कि ईश्वर एक है ।' इब्राहीम यह सुनकर दंग रह गया, क्योंकि फ़रिश्तेने भी उससे यही बात कही थी । भ्रम एक युवकने बी० ए० पास किया। नौकरी मिली। शादी की । बीमा करवाया | एक साधुने उससे पूछा - ' अभी तो तुम्हारी उम्र छोटी है, इतनी जल्दी बीमा क्यों कराया ?' सन्त-विनोद १३३

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