Book Title: Sant Vinod
Author(s): Narayan Prasad Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 146
________________ इस घटनाके कुछ अर्से बाद एक रोज़ द्रौपदीने कृष्णसे पूछा'कृष्ण ! वस्त्रहरणके वक़्त तू आने ही वाला था तो मेरी इतनी विडम्बना होने तक रुका क्यों रहा ?' कृष्णने जवाब दिया-'मैं तो तेरी मददको आया हुआ था। लेकिन तेरा ध्यान मेरी तरफ़ नहीं था। तू अपने रक्षणके लिए पाण्डवोंपर आस लगाये थी। जब मुझे पुकारा तो मैंने तत्काल अपना काम शुरू कर दिया।' दुनिया एक साधुने चार वृद्धजन बुलाये और उनसे दुनियाका अनुभव पूछा पहला-'अरे दुनिया बड़ी मक्कार है ! हरएक किसी-न-किसी तरहके छलसे अपना उल्लू सीधा करनेमें लगा हुआ है।' दूसरा-'क्या कहें ! आज दुनियामें इतनी अनीति बढ़ गई है कि किसीका भी विश्वास नहीं किया जा सकता।' तीसरा-'दुनियामें सब स्वार्थके सगे हैं।' चौथा-'इस दुनियामें सुख व समाधान बिलकुल नहीं।' सबकी सुनकर साधु बोला-'तो चलो भाई, हम सब संन्यास ले लें। ऐसी दुनियामें लगे रहनेसे क्या फ़ायदा ?...' आगे साधु क्या कहता है यह सुनने के लिए एक भी बुड्ढा न ठहरा ! दुनियाका सुख एक आदमी जंगलमेंसे जा रहा था। उसने एकाएक शेरकी दहाड़ सुनी । वह भागा। थोड़ी दूर भागनेपर उसे एक मदोद्धत हाथी दिखा जो उसकी तरफ़ लपक कर आने लगा। आदमी बेचारा आड़े रस्ते दौड़ने १३६ सन्त-विनोद

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